Rohan Gangurde   ('ज़ाफ़िर')
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Joined 8 August 2020


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6 JUL AT 12:42

एक बेक़रार सी बेचैनी है दिल में
क्या अब भी तू कहीं बसी है दिल में

लोग बसते हैं इक हसीं दुनिया में
और मेरे ग़मों की बस्ती है दिल में

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26 JUL 2021 AT 23:33

ढूंढता हूं हर जगह पर न मिली वो कहीं
क़ैद मेरी ऑंखों में अब वो उम्र भर होगी

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16 JUL 2021 AT 19:03

हर चेहरा बे-चेहरा है मेरे सपनों के आगे
हर चेहरे से हर रिश्ते से मुकर चले है हम

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7 JUL 2021 AT 1:29

भटक कर गर्दिश में हमको कोई सितारा न मिला
ख़्वाहिश भरी दुनिया में जीने का सहारा न मिला

है मुक़म्मल हर ज़िन्दगी तमाम दुनिया के लिए
मैं उस कश्ती में हूॅं जिसे कभी किनारा न मिला

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1 MAY 2021 AT 16:36

कई परिंदे घायल पड़े हैं ज़मीं पे
अब उड़ने को पर किसे दोगे?

दान कर दोगे तुम सब कुछ 'ज़ाफ़िर'
अपने उदासी का हुनर किसे दोगे?

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13 APR 2021 AT 13:59

सुना हैं दिल तुम्हारा, बात तुम्हारी सुनता नहीं
हम उसको भी बहलाएँगे, तुम आओ तो सही

सब घरों में आज तूफ़ान उठ सा जा रहा हैं
हम आँधियों में घर बसाएँगे, तुम आओ तो सही

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1 MAR 2021 AT 19:08

when my relatives sudden occurred in a disastrous mood and did not left the house for a very long time.

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26 FEB 2021 AT 0:12

वक़्त हैं जो चंद लम्हों गुज़र जाएगा
ये नशा भी कुछ दिनों में उतर जाएगा
लोग बेवफ़ा करते हैं तो क्या हुआ?
दिल का बाग़ीचा भी फूलों से भर जाएगा

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23 FEB 2021 AT 20:30

दर्द कितने ही मिलें, सब बताऊँ क्या?
बताओं
दुनिया ख़त्म हो जाएगी,
गिनते-गिनाते दिलों के घाव

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23 FEB 2021 AT 0:38

गिले भी हैं और गिरे भी हैं
शिकवे भी हैं और सीखे भी हैं
न खून है न निशान, पर ये "ज़ख्म"
हरदम जले भी हैं और झेले भी हैं

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