ऊपर जो अदालत हे ना,,
वहां सबकी रूह गवाही देगी,।
तुम्हारी दौलत का शोर,
वहा खामोश रहेगा-
जो दुआ देते थे कल तक बद-दुआ देने लगे
छिन गई कुर्स... read more
उदय प्रताप जी की सुन्दर रचना
कोई खुशबू, न कोई फूल, न कोई रौनक
उसपर कांटों की जहालत नहीं देखी जाती
हमने खोली थीं इसी बाग में अपनी आंखें
हमसे इस बाग की हालत नहीं देखी जाती-
कुछ लोग जिधर की हवा हे,,
उधर चल पड़ते है,
हालाकि ये काम कचरे का होता,!!😀😀-
समाज समाज का रिश्ता भगवान ने विपत्ति बाँटने के लिये बनाया था,,
लेकिन अफसोस आज यहा सिर्फ संपत्ति बंटने व मुह देखी बात तक सिमट कर रह गया है,🤫-
बादलों की तरह बारिश की कहानी में रहो
तुम मेरा ग़म हो मेरी आंख के पानी में रहो
ये नई दिल्ली तुम्हें रास नहीं आएगी
लौट कर आओ मेरी जान पुरानी में रहो-
जीवन में उन सपनों का कोई भी......
महत्व नहीं , जिनको पूरा करने के लिए.....
आपको अपनों से ही छल करना पड़े .......!-
आज पनीर नही, दाल मे ही खुश हूँ
आज गाड़ी नही, पेदल ही खुश हू
आज कोई नाराज है उसके इस अंदाज से खुश हूं जिसको देख नहीं सकता उसकी आवाज में खुश हूं जिसको पा नहीं सकता उसको सोच कर ही खुश हूं
बीता हुआ कल जा चुका उसकी मीठी यादों में खुश हूं
आने वाले कल का पता नहीं इंतजार में खुश हूं-
तुम्हरा क्या है तुम्हे सिर्फ ज्ञान देना है,
हमारी सोचो हमे इम्तिहान देना है,,-