अभी कुछ आलम युं है कि,
हम किसी की बंदिशों में नहीं हैं।
राजा है हम उस सल्तनत के
जिसकी रानियां कई हैं।
दुनिया एक आजाद पंछी बन
बड़े मजे से देख रहें।
जिस डाली पर करता मन,
वहां बैठे धूप सेक रहें।
अभी हर कुएं का पानी पीकर
मंद-मंद मुस्काते हैं।
नए कुएं की तलाश में फिर,
कहीं हौले से निकल जाते हैं।
बसंत के वह फूल कभी यहां,
पतझड़ में भी खिल जाते हैं।
किसी की तलाश में यहां,
किसी और से नैन मिल जाते हैं।
सब बदलेगा एक दिन,
जब एक सूत्र में बंध जाएंगे।
वह कुआं भी फिर एक ही होगा,
फिर एक ही डाल पर गाएंगे।
- राjan सिंह✍