आसमां में उड़ना भी चाहती थी,समन्दर में डूबना भी।हवा में खोना भी चाहती थी,बारीश में समाना भी।रंगों को बिखेरना भी चाहती थी,सुगंध को छेड़ना भी।पर सपने इस कदर टूटे हमारे.....कि न सपने देखना चाहती थी,न जिंदगी जीना भी। -
आसमां में उड़ना भी चाहती थी,समन्दर में डूबना भी।हवा में खोना भी चाहती थी,बारीश में समाना भी।रंगों को बिखेरना भी चाहती थी,सुगंध को छेड़ना भी।पर सपने इस कदर टूटे हमारे.....कि न सपने देखना चाहती थी,न जिंदगी जीना भी।
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