जब धीरे से हस्ती हो बारिश की बूंदों सी लगती हो
कैसे करू हाल ए दिल बयान तुम खामोशी में भी जचती हो
थोड़ा दिल का कहती हो ज्यादा दिल में रखती हो
क्यूं करू आजाद तुम्हे तुम तो दुवाओं में रहती हो
शूट सादा ही पहनती हो फिर भी उजाला लगती हो
जान लेती हो तुम आंखो के नीचे तील काला रखती हो
झुमके बिंदी और काजल में कयामत ढाती हो
करने दो इस महफिल को श्रृंगार तुम सादा ही सजती हो
जब जुल्फों को हल्के से सिरहाती हो आइने में खुद को निहारती हो
दिलकश या खूबसूरत तुम हर नकाब में भी जचती हो-
अंजान से एक शहर से लिख रही
यकीनन कहानियां नही ज़हर लिख रही
अब लिख नहीं पाती में
नज्मों को स्याही का होना जरूरी है क्या
बेजार है मेरी निंदे
रात सिरहाने को कोई ख़्वाब का होना ज़रूरी है क्या
सुरमई उजाले और रेशमी अंधेरे सुनो
मेरे किस्से के समियानों में दस्तक जरूरी है क्या
बड़ा खाली सा लगेगा सफर
संवरने के लिए कोई मंजिल जरूरी है क्या
लिहाज़ा तूफान लाता है ये दिल
भटकने को कोई रास्ता जरूरी है क्या
समंदर भी ऐब सा लगेगा
कैद होने को कफस का होना जरूरी है क्या
-
किस मोड़ से गुजर रहे आप नही जान पाओगे
बस इतना तय है की सिर्फ वहा पोहचना है-
कविताएं शेर गजलें आवारा लोगो का काम है
प्यार के क़फस में अक्सर इंसान लिखना भूल जाता है-
मासूमियत मजिद रास्ता बदल रही थी
जल्ली सी जिद्दी सी वो लड़की आज चुपचाप
खिड़की से चांद को तक रही थी-
जिसे चुभना था हाथो में वो कांटा गुलाब दे गया
किनारे घर जल रहा था मेरा पास में समंदर धरा ही रह गया-