बेटियाँ भी घर की चिराग होती हैं,
ये बात इतर कि दीया-बाती साथ- साथ होती हैं,
प्रेम त्याग की मूर्त वो,वक्त के थपेड़ों में साहस भी संजोती हैं,,
बेटियाँ कभी पराई नहीं होती, पर अफ़सोस पराई समझी जाती हैं।
बेटियां भी घर की चिराग होती हैं,
ये बात इतर कि मायके-ससुराल दोनों के साथ होती हैं,
वक़्त की धार में तब्दील होते हालात में, बेटियाँ भी माँ-बाप के काम आती हैं,
बेटियाँ मायके की आन, तो ससूराल की शान होती हैं।
बेटियाँ भी घर की चिराग होती हैं,
माँ का दाहिना हाथ तो पिता की श्वांस होती हैं,
वो माँ के एहसासों को पढ़ लेती हैं, पिता के जज्बातों को जन्म देती हैं,
दूर रहकर भी ताउम्र माँ -बाप के सपनो में जीती हैं।
बेटियाँ भी घर की चिराग होती हैं,
बेटियाँ कभी पराई नहीं होती, पर अफ़सोस पराई समझी जाती हैं।।
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