समझा ही नही मेरे जज़्बातों को कभी तूने,
ना समझ कहूं तुझे या किया तूने नज़रअंदाज़!
हर बात पे उगली तूने आग,
ना बारिश का पानी बुझा सका,
ना इश्क़ के समन्दर मे डूब के बुझी तेरी प्यास!
कोशिश भी सारी हो गयी नाकाम,
समझाते-समझाते तुझे थम गयी मेरी ज़ुबान!
कर दी तूने सारी हदें पार,
दिलो ने मिलना किया इंकार!
शायद तुझे परवा ही ना थी कभी,
वर्ना छोर के ना जाति मेरा साथ,
थाम के रखती मेरा हाथ!
होगा कभी तुझे गलती का एहसास,
रोएगी तु जब आएगी फिरसे मेरी याद,
ढूंढेगी निगाहें मेरी पहचान,
करेगी तु मिलने की फरियाद!
करूँगा मे उस दिन का इंतज़ार,
पर कर ना सकूंगा तुझे माफ!!
- R.K