गए जो तुम थे छोड़ कर , बात एक मोड़ पर
लफ्ज है ठहरे वहीं , ख्वाब सारे जोड़ कर
मूँदती है शाम आँख, तारिकाएँ बिछ रही
आ भी जाओ अब जरा , मैं अभी ठहरा वहीं
बात थी एक रात की , रात एक बात की
ऋतुएँ कितनी बीती है , आस तेरे साथ की
ढूँढता हूँ हर गली , जैसे हो बिखरा कहीं
आ भी जाओ अब जरा , मैं अभी ठहरा वहीं
धड़कनों की लय पे मैंने , क़ाफ़िया सजाया है
पलकों की एक छोर पे , आशियाँ बनाया है
अश्क़ों में जो ढह जाये , है वो आशियाँ नहीं
आ भी जाओ अब जरा , मैं अभी ठहरा वहीं
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