Rishi   (प्रत्यंचा)
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Hobies- Writing,Painting,Trekking, Physics,Music
Joined 9 April 2017


Hobies- Writing,Painting,Trekking, Physics,Music
Joined 9 April 2017
1 FEB AT 11:11


गए जो तुम थे छोड़ कर , बात एक मोड़ पर
लफ्ज है ठहरे वहीं , ख्वाब सारे जोड़ कर

मूँदती है शाम आँख, तारिकाएँ बिछ रही
आ भी जाओ अब जरा , मैं अभी ठहरा वहीं

बात थी एक रात की , रात एक बात की
ऋतुएँ कितनी बीती है , आस तेरे साथ की

ढूँढता हूँ हर गली , जैसे हो बिखरा कहीं
आ भी जाओ अब जरा , मैं अभी ठहरा वहीं

धड़कनों की लय पे मैंने , क़ाफ़िया सजाया है
पलकों की एक छोर पे , आशियाँ बनाया है

अश्क़ों में जो ढह जाये , है वो आशियाँ नहीं
आ भी जाओ अब जरा , मैं अभी ठहरा वहीं

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22 OCT 2023 AT 2:09

रात कभी तो लगता है
की जो तू ठहर जा थोड़ा
बाँट लूँ दिल के सब क़िस्से
जिन्हें रग रग में है जोड़ा


तेरी स्याह सन्नाटे में
अपनापन सा लगता है
कह दूँ क्या हृदय में जो
छन सा बजता है

ढलते शाम की ये सिलवटें
समेटते समेटते
आँखें ये लग जाती है
यूँ सोचते ही सोचते


एक बात बता दूँ तुझे
एक कविता सुना दूँ तुझे
जो तू ठहर जा थोड़ा सा
कुछ गुनगुना दूँ मैं तुझे

पर शायद तू बेचैन है
यूँ ही कुछ मेरी तरह
टिमटिमाते तारों से
कह रहा अपनी विरह

ख़्याल एक बात का
और तू मुझे समझ सके
इंतज़ार उस रात का
जो मैं तुझे समझ सकूँ


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17 JUN 2023 AT 12:47

रम रहा तुझमें जो है
है वही कण कण में भी

दिक् दिगंतर और वो है
है वही क्षण क्षण में भी

अनवरत जो है गति में
शान्ति का पण लिए

हाथ में ले धर्म की ध्वज
जिसने है सब रण किए

मूर्ति है जो समर्पण की
त्याग जिनका नाम है

राम है वो जानकी के
वो जानकी के राम है

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28 JAN 2023 AT 17:09

मणि मुक्ता और रत्न भले हो
कर्मकाण्ड के यत्न चले हो
रुपयों के भण्डार लगे हो
अम्बर के अम्बार सजे हो
पर सुन ले पथिक जरा वो मुझको
वे तो जूठे बेरों वालें
तेरे इन चालों में नहीं चलते है

प्रेम अकेला सत्य यहाँ है
बाकी सब जग झूठा है
पल भर में है कोई मना
तो पल भर में कोई रूठा है
इसकी डोरी बाँध ले साथी
ये तो दिल के रिश्ते है
बस बातों पे नहीं चलते है

वे तो जूठे बेरों वालें
तेरे इन चालों में नहीं चलते है

माना की तू व्यस्त बहुत है
जीवन में तुझे कष्ट बहुत है
पर कुछ पल तो जीवन से चुरा ले
किसी को इन आँखों में छिपा ले
क्योंकि यादों की पगडण्डी पे
यूँ तनहा ही नहीं चलते है
वे तो जूठे बेरों वालें
तेरे इन चालों में नहीं चलते है

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1 JAN 2023 AT 12:01

साल कहने को फिर एक नया आ गया
दिल पे दस्तक फिर एक दफ़ा आ गया

हो रहा है ये आकाश गुंजित बहुत
भीड़ भी है चमक से रंजित बहुत
खटखटाती हुई ये ध्वनियाँ जो है
सुन के इनको मन क्यों है विचलित बहुत

करवट लेने भी ना पाए थे हम
बेवक्त मौसम बेवफा आ गया

साल कहने को फिर एक नया आ गया
दिल पे दस्तक फिर एक दफ़ा आ गया

एक नयी सुबह की वो रात आ गयी
वो तो आए नहीं , उनकी याद आ गयी
दोस्तों ने जो पूछा की क्या हाल है
तो होठों पे उनकी ही बात आ गयी

याद सारी जो हमको सोने देती नहीं
उन यादों का फिर सिलसिला आ गया

साल कहने को फिर एक नया आ गया
दिल पे दस्तक फिर एक दफ़ा आ गया

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25 DEC 2022 AT 10:23

प्रेम , संधि , समरसता के
तुम जग में एक परिचायक थे
कोटि कोटि हृदयों के तुम
सर्वप्रिय जननायक थे
राजनीती के कलित पंक में
शतदल कमल सुशोभित तुम
कविता का तुम ओज लिए
नायक और विनायक थे

है अंतिम ये प्रयाण नहीं
तुमने भी ये माना होगा
गीत की लय जब जब टूटेगी
तुमको फिर आना होगा
काल के भाल पे फिर तुमको
गीत नया लिखना होगा
तुमको फिर आना होगा

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12 JAN 2021 AT 0:30

मानव होने के नाते
आपस में रखो तुम प्रेम
यही है मेरा संदेश
यही है मेरा संदेश
धरती भी एक ही है
माता वो हमारी है
हम भाई भाई है
फिर क्यों रखे हम बैर
यही है मेरा संदेश

ना कुछ लेके तुम आये थे
ना कुछ लेके तुम जाओगे
सब यहीं धरा रह जाएगा
फिर क्यों रखे हम बैर
यही है मेरा संदेश
आपस में रखो तुम प्रेम
यही है मेरा संदेश


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28 DEC 2020 AT 9:46

दो-चार पंक्तियों में कुछ कहानियाँ लिख देता हूँ।
जो जी नहीं पाया वो किरदार निभा लेता हूँ ।

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2 OCT 2020 AT 10:20

मैं:

ऐ कलम , तू उठती क्यों नहीं ?
तलवार सी अग्नि भर धधकती क्यों नहीं ?
दर्द कितना था ?
रात भर परसों तू सिसकती यूँ रही ।

कलम:

मैं तो जला दी गयी
जिस स्याही से शब्द
बरसते थे वो सूखा दी गयी
उसी रात उन लकड़ियों
के नीचे दबा दी गयी

मैं:

स्याही ना सही
उस राख से मैं
नयी कलम बनाऊँगा
मालूम ना समझना
बहुत शक्ति है
इस राख में
मिटा देगी हर एक सत्ता
हर एक अहंकार
को खाक में





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2 JUL 2020 AT 3:08

हया है वफ़ा है

मंजिलों की राह में 

कई ख्वाब दफा है

फिर भी मुस्कुरा देते है

शायद यही जिंदगी का फलसफ़ा है

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