Rishabh Shah   (ऋषभ शाह)
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Joined 15 December 2017


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14 OCT 2020 AT 22:53

कोई खबर दे पहरेंदारों को शहर के,
घुसपैठ होने लगी है,
आजकल सपनों में अब...!

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13 OCT 2020 AT 23:24

नाम खाँमखाँ ही उनका याद करते हैं,
क्यों ना जाने उन्हें इतना आबाद करते हैं ,
ना लौटकर आए, तो ही अच्छा है
वैसे आकर कौन-सा इरादे पाक करते हैं...!

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13 OCT 2020 AT 0:11

तुम्हें अपना ख्वाब बनाता हूँ,
तेरी यादों को उसमें सजाता हूँ,
जब कभी भी एहसास होता है तेरा,
उनसे अक्षर और उनकी कवितायें बनाता हूँ...!

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11 OCT 2020 AT 21:56

जा उड़जा धूल उड़ाने वाले,
मिट्टी का रंग लगाने वाले,
जान-माल की बातों से,
रूठों का दिल बहलाने वाले...!

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10 OCT 2020 AT 22:15

वह मुद्दतों में आकर मेरा नाम लेते हैं,
और हम मुद्दतों का दर्द-ए-ग़म
गुमनाम कर बैठते हैं...!

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9 OCT 2020 AT 23:16

कौन कहता है कि बड़ा हो गया हूं मैं,
आज उन्हीं नन्हीं गलियों से गुजरा ,
तो बचपन को खेलता पाया है मैंने...!

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7 OCT 2020 AT 1:00

बस कुछ पलों की जद्दोजहद थी,
कब तुम 'मैं' और मैं 'तुम' हो गए,
पता ही नहीं लगा...!

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6 OCT 2020 AT 0:22

यादों का सूरज चमक रहा है,
देख शायद फिर दिन ढल रहा है...!

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4 OCT 2020 AT 23:01

तुम लत हो मेरी
जो अभी भी सबके लिए ना-खुला सा है
वह खुला खत हो मेरी
तुम लत हो मेरी...!

मैनें खुद को
रास्तों पर डगमगाते ,
गिरते-उठते, गाने गाते देखा है,
बाथरूम के आईने में
चोरी से खुद को नहाते देखा है...
हां मैंने खुद को तुम्हारी लत लगाते देखा है...!

ठंड कोहरे भरी रात में
मैनें सितारों को टिमटिमाते देखा है,
रात की सर्द हवा में
तेरे शब्दों को अलाव बनाते देखा हैं
मैनें खुद को तुम्हारी लत लगाते देखा है...!

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3 OCT 2020 AT 20:42

हर एक मोड़ पर रूकते नहीं है 'ऋषि',
हर एक मंजिल मुकां नहीं...!

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