हां तब में लिख लेता हूं।
जब तेरी यादों की चीखें मुझे सोने नहीं देती और रात के अंधेरे में भी खोने नहीं देती, तब में लिख लेता हूं।
मेरी गलतियों का पछतावा जब मुझमें आग लगाता है और तेरी यादों की चिंगारियों को शोले बनाता है, तब में लिख लेता हूं।
वो वक़्त नहीं रहा कि कोई हो मेरे पास मेरा दिल बहलाने को ओर ना ही कोई है तेरे दिए ज़ख्मों पर मलहम लगाने को,
चादर की जगह तेरी यादों को ओढ कर ज़िन्दगी से सीख लेता हूं ओर यही वो वक़्त होता है जब में लिख लेता हूं।
- Rishab Pratap Choudhary