Rinki Mishra   (Rinki Mishra)
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Joined 12 January 2018


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Joined 12 January 2018
14 JAN AT 9:29

पतंगबाजी तो आती नहीं थी मुझको,
मेरे लिए मकर संक्रांति का मतलब था,

हास्टल से घर आने का बहाना,
खूब सारी बातें,मां के आसपास मंडराना,
तिलपट्टी और लाई बनाती थी प्यार से,
स्वाद लेकर खाते हुए धूप सेंकना...।।।

बिना नहाए धोए उस दिन मां कुछ खाने नहीं देती थी,
शाम को घर में कढ़ाई भर दाल पकौड़ी बनती थी
चौक में आग जलाकर हम सब साथ वक्त बिताते थे,
हम पांचों को साथ देखकर सारी दुनिया जलती थी..।।

अरसा बीता हैं मां के हाथ के लड्डू खाएं हुए,
अरसा बीता हैं मेरी वाली संक्रांति मनाएं हुए..।।

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17 SEP 2023 AT 0:34

हूं बेखबर हर ग़म से सोहबत में तेरी,
तेरा मेरे सारे नाज उठाना, मेरा हौसला बढ़ा देता हैं...।।।।

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27 MAR 2023 AT 12:15

यूं ही बैठे बैठे ही अचानक भीग जाती हैं अब मेरी पलकें,
शायद मन मेरा ख़ुश नहीं हैं, खुद से ही इन दिनों....।।।

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21 MAR 2023 AT 11:35

अपने मन की बिन बोले भी, कह सकते हैं सारी बातें,
लिख कर अक्सर ज़ाहिर करने में कटती हैं मेरी रातें..।।
कहां गरज हैं किसी संग बैठ,मन अपना समझाने की,
कविताएं भी तो कह सकती हैं,कहानी हर अफसाने की....।।।

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24 OCT 2022 AT 16:10

Time flies so fast... When I look back to diwali days of my childhood, I used to help my mum making daal ka halwa for Prasad every year that day and only a few minutes of mine always made her appreciate me by saying "Ye sb gudiya ne hi bnaaya hai"...
And now entering the adulthood when I am capable to handle all the kitchen(even house) alone, there is no one who shows me off like my mother used to do so proudly... ❣️

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9 SEP 2022 AT 23:13

Whenever I am so tired and fade up with my day, what I miss the most is my parents... Momma serving me food while daida hugging me the tightest...

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3 SEP 2022 AT 13:26

अब कहां वो शनिवार इतवार आते हैं,
जब हम सबके साथ समय बिताते हैं,

वो जब सब सुबह हाथ बंटाकर काम करते थे,
ताकि खेल सके लूडो और साथ समय बिता सके,
वो जब दोपहर में कोई फिल्म देखते थे सब साथ में,
और कोशिश करते थे उस पर अपनी राय रखने की,
वो जब शाम की चाय पर चर्चा होती थी कि
क्या स्पेशल खाना बनेगा आज,
समय ज्यादा से ज्यादा बिता लेना चाहते थे इक दूजे के साथ,
ताकि आने वाला हफ्ता खूबसूरत यादों में बीते,

अब कहां वो शनिवार इतवार आते हैं,
जब हम सबके साथ समय बिताते हैं..।।

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5 AUG 2022 AT 9:56

कभी भारी सा लगता हैं मन बेवजह भी,
हमेशा मेरी चहचहाहट बरकरार रहे जरूरी तो नहीं...।।

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8 JUL 2022 AT 18:40

वो जो सुबह सुबह उनींदी सी आवाज लगाते हो मुझको,
सच कहूं उससे खूबसूरत कुछ भी नहीं लगता....

कि कोई हैं जिसकी सुबह का पहला ख्याल हूं मैं,
कि कोई हैं जो देखना चाहता है मुझे आंख खुलते ही,
कि किसी के अनकहे खूबसूरत जज़्बात हूं मैं....।।

वो जो आकर शाम को मेरी हर उदासी समेट लिया करते हो अपने दामन में,
सच कहूं उससे खूबसूरत कुछ भी नहीं लगता.....

कि कोई हैं जिक्र जिसका करके खिल उठती हूं मैं,
कि कोई हैं जिसे अपना हक से कह सकती हूं मैं,
कि कोई हैं जो मेरा हैं, सिर्फ मेरा,
कि कोई हैं जिसे देखकर ही जी उठती हूं मैं..।।

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16 JUN 2022 AT 11:50

जब भी खुश करना चाहो किसी को और कर ना पाओ,
मुनासिब हैं खुद ही के साथ फिर रम जाओ,
जिसे होगी फिक्र कुछ कदम वो भी चलेगा,
इतना भी ना बढ़ो आगे कि फिर मुड़कर खुद से ही ना मिल पाओ....।।।‌

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