11 APR 2018 AT 0:48

रौशनी
चलते चलते अमर के पाँव ठिठक गए।अमर उस घर के सामने यूँ खड़ा हो गया था,मानो इस घर से उसका पुराना नाता हो।उस घर के बाहर चबूतरे पर एक १३-१४ वर्षीय लड़का गीली मोमबत्तियों को करीने से रखकर उनके धागे काट रहा था।
अमर की आँखों में उन दिनों की यादें चलचित्र की तरह उभर पड़ीं।पिताजी की अकस्मात मृत्यु से ऐसा प्रतीत होने लगा कि दीपक के बिना आगे कैसे बढ़ें?१०वीं की परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद उसे ही घर की जिम्मेदारी अपने कंधों पर लेनी पड़ी थी। माँ और बहिन भी मोमबत्तियाँ बनाने ,उसे पैक करने में उसकी पूरी सहायता करतीं थीं।सच् यह गृहउद्योग,लघु उद्योग,कुटीर उद्योग भटके हुए लोगों के लिए चिराग की रौशनी ही होते हैं।अमर मुस्कुराते हुए अपनी कार की तरफ बढ़ गया।

- रेणु शर्मा