भगवान भी सोचते होंगे... मैंने तो मनुष्य को सबसे ज्यादा बुद्धिमान बनाया था...परंतु ये हर मामले में इतना बेवकूफ कैसे निकल गया!! 🤔
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मिन्की - लड़कियां शिव जी जैसा पति ही क्यों चाहती हैं?
चिंकी - क्योंकि शिव जी ने कभी अपनी पत्नी पार्वती मां को दबा के नहीं रखा। मां गंगा को अपने सिर पर स्थान दिया और मां काली के पैरों के सामने खुद लेट गए उनको रोकने के लिए। मां सती के मृत्यु से दुखी हो के उनके जले हुए शव को ले के घूमते रहे चारों ओर। मां अन्नपूर्णा उनकी पत्नी ही है, फिर भी भोजन की याचना करते हैं। शिव जी पति हो कर भी, मां दुर्गा को भेजते हैं असुरों से लड़ने, और उनकी शक्ति का गुणगान करते हैं... लड़कियां इसीलिए शिव जी से उनके जैसा पति मांगती हैं।
परन्तु शिव जी जैसे तो सिर्फ शिव ही हैं, कोई और नहीं।-
तुम्हारे द्वारा किया गया पूर्व का व्यवहार ही, मुझे आज तुम्हारे प्रति असंवेदनशील बनाता है।
I am the real Evil Personality , when you hurt my previous good deeds and nice behaviour.
Yes ! You have made me RUDE-
है पापी मन मेरा
बार बार संसार में खो जाता।
न जाने क्यों,
परब्रह्म परमेश्वर को भूल जाता।
अपने आप को ही न जाने क्यों..
करता- धरता खुद को ही मान लेता,
कर्तव्य पथ को भूल, स्वार्थ में लग जाता।
मैं हूं अनाड़ी बालक...
हर बार तुझे न जाने क्यों मैं भूल जाता।
पर तू, हर बार
अपने साथ होने का अहसास करा ही जाता।
मैं भूल भी जाऊं तुझे...
तू न कभी मुझे भुला पाता।
हर अनजानी राह पर
तू रौशनी बन मुस्कुराता।
अपने प्यार का हाथ ..
सदा सर पर रख ही जाता।
दर्द में कभी आंसू पूछता
तो कभी गलती पर डांट लगाता।
मेरे हर इच्छा भावना को समझता
पर जो भी मेरे लिए सही हो...
उसी से मेरी झोली भर जाता।
हां! मैं कभी भूल भी जाऊं तुझे
तू मुझे कभी भी भुल न पाता।
हर हर महादेव 🙏😌-
अब तो तुम मेरे "काश" में भी नहीं
अब तो बचपन का साथ भी नहीं।
दूरी ऐसी कि अब कभी घटेगी नहीं,
पर अहसास आज भी जो कभी मिटेगी नहीं।
हाँ! अब तो मुझमें कुछ भी नहीं...
पर शायद... आज भी हम वहीं कहीं।
क्योंकि जुड़ी मैं तुमसे आत्मा से.. शरीर से नहीं।-
निःशब्द हूँ, स्तब्ध हूँ मैं।
क्या कहुं, बहुत असमंजस में हूँ मैं।
"क्यों" का कोई जवाब नहीं....
हां! शान्ति हमें प्रिय है।
पर शान्ति की शर्त बमों के धुएं में कहीं छिप सी गई है।
क्या ऐसी ही शांति हमें चाहिए थी?
बार बार पूछ रही हूं खुद से
जो भी हुआ...क्या वो सही है?
माँ भारती क्या खुश है, उसके बच्चों के जीवन बचने से?
या फ़िर दुःखी है...1971 का इतिहास न दोहराने से?
क्या अब sindoor का रंग अब कभी फीका न पड़ेगा?
क्या दहशत अब कभी हमें छुएगी नहीं?
क्या आतंक का साया टल जाएगा?
क्या ये शान्ति कुछ घुटन वाली नहीं लग रही...!
खैर! जानें तो बच गई.... *फ़िलहाल*।-
अपनी पांव पर कुल्हाड़ी खुद मारते हो
' पर्यटकों ' को मार कर सहानुभूति दिखाते हो
जिनके कारण रोटी खाते हो
उन मेहमानों को मौत की नींद सुलाते हो।
क्या लगता है टिक जाओगे?
आतंकियों को शय दे कर, खुद जम जाओगे?
जड़े तुमने खुद अपनी खोद ली है...
अर्थव्यवस्था से गिर जाओगे।-
हम लड़कियां लड़कों से बराबरी करते करते कहीं बहुत नीचे तो नहीं गिर रहें।
पढ़ाई लिखाई नौकरी के साथ साथ पुराने संस्कारों को तो नहीं भूल रहें
धुएं के छल्लों में हुक्के की गुड़गुड़ाहट से मदिरा के बहकावे में तो नहीं आ रहे
आधुनिकता तो विकास का प्रमाण है, कहीं पाश्चात्य संस्कृति के दबाव में तो नहीं आ रहे?
क्यों अपने संस्कारों से मुंह मोडे हम
क्यों अपने आप से प्यार करें न हम
क्यों फेफड़े किडनी को गलाए हम
क्यों मजे के नाम पर आधुनिक कुरीति फैलाए हम।
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'शक्ति' को संभाले, अर्धांगिनी बनाये
सब में वो दम कहां!?
पत्नी जिसकी ' दुर्गा ' हो
नतमस्तक हो स्तुति करे
सब में वो साहस कहां!?
तुम्हें तो चाहिए गोरी सी 'गौरी' केवल
महा'काली' के चरणों में लोट जाओ
' महाकाल ' सा तुम में दिल कहां!?
सच है...
हर किसी के बस में 'महादेव'बनना कहां!
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