Ravinder Singh   (Mr. Dark Writer)
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Joined 17 June 2017


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23 OCT 2020 AT 23:20

मेरी मुस्कराहटों से धोखा न खा
मेरी जान!
यहाँ अश्क़ों का दरिया बहता है

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11 SEP 2019 AT 12:28

साँसे जमती हैं पिघल जाती हैं
हक़ीक़त पल में यूँ बदल जाती है

ख़्वाहिशें अब बस में नहीं अपने
जाने कब क्या से क्या बन जाती हैं

कोई शौक से नहीं करता ये 'धंधा'
कुछ बेटियां हालातों में ढल जाती हैं

गाड़ी में अपनी कुछ ख़ास दम नहीं
बस जैसे-तैसे ये चल जाती है

जी लो जो है ये पानी-सी ज़िंदगी
बूंद बूंद हाथ से फिसल जाती है

हसरतें अपनी भी बहुत रहीं पर
कुछ बदल तो कुछ कुचल जाती हैं

रोज़ जानें निकलती बहुत हैं बाहर
कुछ घर जाती हैं कुछ मर जाती हैं

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21 JUL 2019 AT 20:20

आजकल तन्हाईयाँ लोगों से ज्यादा रास आने लगी हैं
ख़ामोशी धीमे-से कानों में कुछ गुनगुनाने लगी है
लोगों से मिलना-जुलना अब बंद-सा ही समझ लो
ये धुँधली परछाइयाँ भी तो अब मुझे चिढ़ाने लगी हैं

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6 JUN 2019 AT 15:36

मुझे मारकर अब पूछते हैं हाल मेरे,
दिन-रात भीगते रहे हैं ये गाल मेरे,
सुनकर चंद अल्फ़ाज़ मुँह मोड़ चल दिया,
शायद चुभ गए हैं उसको सवाल मेरे।

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6 MAY 2019 AT 1:38

बता क्या लिखूँ?

आज मन है मेरा, बता तेरे लिए क्या लिखूँ?
कोई बीती बात लिखूँ, या कुछ नया लिखूँ?

बता तन्हा कहाँ हूँ मैं, तू मेरे एहसासों में है
मिले अरसा हुआ, पर तेरी ख़ुशबू साँसों में है
तेरी छुअन याद है ऐसे, कल ही मिले थे जैसे
नशा अब भी यूँ है तेरा, मयखाना पी लिया हो जैसे

कोई बीते दिनों का किस्सा या इश्क़ की दास्ताँ लिखूँ?
आज मन है मेरा, बता तेरे लिए क्या लिखूँ?

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1 MAY 2019 AT 23:40

The Surprise

The days are black,
suffering so much hustle,
I think life is playing,
a very lovely puzzle,

Waiting for the time,
When the nights will glow,
Silence will be broken,
When the winds will blow,

Waiting for the time,
To become sun and rise,
But time is over, life,
Here comes your surprise!

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25 APR 2019 AT 1:02

दिल का मौसम

इस मौसम ने ये जाने कैसी अंगड़ाई ली है,
दिल का चैन-सुकून, नींद सब छीन ली है,

जाने किस सुरूर में ये मन झूमे जा रहा है
भई हमने तो बरसों से कोई शराब नहीं पी है

क़िले में कैद किया था हमने अपने दिल को,
लगता आज किसी तीर ने कोई दीवार भेद दी है,

डर है मौसम मैं कहीं इतना ना बहक जाऊँ
कि आज भूल बैठूँ क्या ग़लत क्या सही है

अपना तो इस शहर कोई अपना न था,
आज अचानक 'रवि' तुम्हें सदा किसने दी है

आज बह लूँ भटक लूँ सारे बंधन तोड़ के
अजी गिनी-चुनी चार दिन तो ज़िन्दगी है

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21 APR 2019 AT 22:46

मैं बहुत थक गया हूँ, पर रुका नहीं हूँ,
मजबूरियों के आगे कभी झुका नहीं हूँ,
मैनें खाईं ठोकरें कई बार गिरा मैं, पर
ऐसा कभी हुआ नहीं, कि गिर के फिर उठा नहीं हूँ

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24 MAR 2019 AT 2:15

नाउम्मीदी

ज़माने की बेपरवाही में अपने अरमान जलें तो क्या
मंज़िल नहीं कोई फिर चलें तो क्या ना चलें तो क्या

जब बेड़ियां पेट की जकड़ लें अपने हाथ
तो फिर दिल में ख़्वाब पलें तो क्या ना पलें तो क्या

लाल की याद में माँ का वक़्त थम ही गया
हम बदनसीबों के अश्क़ ढलें तो क्या ना ढलें तो क्या

यहां नक़ाबों के पीछे भी नक़ाब हैं जनाब
फ़रेबियों के बीच हम भले तो क्या ना भले तो क्या

मैं तो हूँ महज़ मकाँ में बसा बेघर बंजारा
दुनिया को मेरी कमी खले तो क्या ना खले तो क्या

इश्क़ में ख़ुद को इतना बर्बाद कर लिया
अब कोई हमें बख़ूबी छले तो क्या ना छले तो क्या

इस ग़ज़ल को नाम दिया है नाउम्मीदी
ये हसीन ग़ज़ल कोई पढ़े तो क्या ना पढ़े तो क्या

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21 MAR 2019 AT 10:22

खुशियों की चिड़ियाएँ आपके घर-आंगन चहकती रहें,
ज़िंदगी फले-फूले और अबीर-गुलाल सी महकती रहे,
धन-धान्य-सुख-समृद्धि से भरा रहे आपका घर-संसार,
बहुत बहुत शुभ हो आपके लिए ये होली का त्यौहार।

हैप्पी होली!

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