रवि   (रवि)
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Living what I love
Joined 22 May 2017


Living what I love
Joined 22 May 2017
24 MAY 2022 AT 22:44

फिर लगता है, लौट चलें!
पर लौटना उतना ही मुश्किल है,
जितना-
बारिश की बूंदों का बादलों में,
नदियों का वापस हिमखंडों में,
और मेरा,
वापस तुम में।
तुम में लौटने की जद्दोजहद में,
तुम्हें सोचने लगता हूँ!
तो तुम आ जाते हो यादों में
फिर-
वो याद बहुत याद आती है।

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2 MAR 2022 AT 22:22

कभी राजाओं के दम्भ भी टूटे,
कभी वीरों से मल्लखम्भ भी छूटे।
आसमान में चमकता तारा भी टूटा,
अपनो से अपना कोई प्यारा भी छूटा।
दूर कहीं खुशियां बैठी रही मौन,
वक़्त की मार से बच सका कौन।— % &

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28 JUL 2020 AT 21:45


रिश्तों के एक कमरे में बंद है इंसान।
फर्श और दीवारों-छतों जैसे हैं लोग,
उसको घेरे हुए चारों तरफ से।
इंसान चाहता है, ये दीवारें खूबसूरत हो,
और छतें भी उनकी मजबूत हों।
पर एक उम्र होती है हर मजबूती की,
फिर जब ढहने लगती हैं सभी दीवारें,
अंदर सोया आदमी जग जाता है।
उन मलबों से खुद को बचाने के लिए,
इंसान को जागना पड़ता है।
इंसान को दफ्न होने से पहले,
कमरे से भागना पड़ता है।

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24 JUL 2020 AT 13:00

हमसफर होना क्या है-
दो मुसाफिरों का साथ चलना भर।
हम साथ चले थे।
वहाँ शुरुआत से इतनी दूर आकर मैं आज यहीं रुका हूँ
और इस मोड़ से तुम्हारा रास्ता अलग हो गया।
प्रेम खत्म नहीं होता पर इतनी दूर तक
साथ चल कर हम खत्म हो गए।
मैंने सीखा की साथ चलते रहना भर प्रेम नहीं है,
साथ चलते हुए साथ रहना प्रेम है।
-रवि

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27 APR 2020 AT 18:43

अपने अंदर झाँक के देखा,
क्या-क्या मंजर झलक रहे थे।
आधी भरी थी मन-गगरी भी,
ख़्याल बहुत से छलक रहे थे।
नज़र उन्होंने भी फेरी जो-
कभी आँखों के पलक रहे थे।
किस कारणवश मौन पड़े हैं,
चुप न कभी जो हलक रहे थे।
अपने अंदर झाँक के देखा,
क्या-क्या मंजर झलक रहे थे।

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29 JAN 2020 AT 22:22

कैद हूँ मैं किसी चारदीवारी के भीतर।
भीतर सिर्फ मैं हूँ, खामोश हूँ और खोया सा,
मुस्कुराने की कोशिश करूँ पर हूँ मैं रोया सा।
कोई और ख़्वाब नहीं हैं, रिहाई की आस है बस,
पर मेरी आज़ादी की कीमत मेरी ये साँस है बस।
क्या मैं जीता रहूँ ऐसे ही खुद को नफरत में झोंक कर,
या खुद को रिहा कर दूं पल भर अपनी सांसे रोक कर।
मैं कब तक कहता फिरूं ये झूठ की मैं सुलझा हूँ,
मैं तो अपने कहानी में ही बुरी तरह से उलझा हूँ।
ठीक हूँ,
पर कैद हूँ मैं किसी चारदीवारी के भीतर।

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29 DEC 2019 AT 22:26

कभी ठुकराया गया था, अब खुद को पा चुका हूँ मैं,
तुम कभी मेरे भी थे, ये बात भुला चुका हूँ मैं।

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27 DEC 2019 AT 23:22

अभी कल ही तो मैंने गाँव की दहलीज छोड़ी है,
मगर लगता मुझको मैं बहुत मुद्दत से निकला हूँ।
भटकता फिर रहा हूँ मैं कहीं अनजान शहरों में,
मैं खुद को छोड़ जाने कौन सी शिद्दत से निकला हूँ।

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8 DEC 2019 AT 12:45

रुपया-डॉलर-प्याज

रुपया पहुँचा इकहत्तर पर डॉलर हुआ जो भारी,
डाउन स्विंग के कारण पूछे भारत के नर-नारी।
इस से पहले कुछ उत्तर देती सबको सरकार,
खबर उधर से आई पहुँचा प्याज शतक के पार।
हुआ अचानक प्याज नदारद होटलों के मेन्यू से,
गायब हुई नॉन-वेज प्लेटें शादी के वेन्यू से।
शोर मचा संसद में जब जनता सड़कों पर आई,
छोड़ो लहसुन प्याज भाईयों बोलीं निर्मला ताई।
प्याज नहीं खाता कोई जब वित्त मंत्री के घर में,
करें समर्थन राष्ट्रभक्त सब ताई का एक स्वर में।

उटपटांग इन मुद्दों पर जब मचती देखी हाय,
लेकर आये फिर योगी जी सुंदर एक उपाय।
डॉलर और मंहगाई का था उनके पास इलाज,
नाम बदल कर रुपये का अब रक्खा जाए प्याज।
फिर उपाय ये योगी जी का लाया गया अमल में,
देखा चमत्कार लोगों की आस्था बढ़ी कमल में।
जब महंगाई में घुला इस तरह राष्ट्रवाद का रंग,
फिर रुपया-डॉलर छोड़ चल पड़ा देश नरेंद्र संग।

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18 NOV 2019 AT 23:24

मेरे और तुम्हारे उदास होने में बड़ा फर्क है-

तुम उदास होते हो तो मुझ से कितना कुछ कहते हो,
मैं तुमसे कुछ नहीं कह पाता जब, तो उदास हो जाता हूँ।

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