17 MAR 2018 AT 9:23

बचपन की एक ऐसी चीज़ जो, न जाने कहाँ लुप्त हो गई है
गालों पे पडते चाँटों की किलकारियाँ, न जाने कहाँ सुप्त हो गई हैं

- ravi_the_kavi