Rashmi Abhaya   (rashmi abhaya ✍️)
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Free lancer Journalist n Author of 'Raincoat' 'प्रेम में कोई अनुबंध नहीं'
Joined 22 December 2016


Free lancer Journalist n Author of 'Raincoat' 'प्रेम में कोई अनुबंध नहीं'
Joined 22 December 2016
16 JAN AT 14:22

पूछने आये हो मुझसे
मेरा हाल-ए-दिल...
जरा रुकना....
मुड़ के जाना नहीं
आखिरी सांस लेते हुए...
तुम्हारे चेहरे का....
नूर तो देख लूँ।।

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23 JUN 2023 AT 9:29

हंसती खिलखिलाती हुई स्त्रियाँ
सहज स्वीकार नहीं की जाती
पाबंद किया जाता है इनकी हर हंसी को
ये कहकर कि सभ्य घर की औरतें
इतनी ज़ोर से नहीं हंसती...
सुनो, ये आज की स्त्री है जो मुक्त हैं
तुम्हारी दक़ियानूसी रिवाज से
बांधने की जितनी कोशिश करोगे
उतनी हीं स्वतंत्र होंगी ये…
और एक दिन यूँ हीं खिलखिलाती हुई
निकल जायेंगी तुम्हारी सोच की गिरफ़्त से
तुम्हारी हर कोशिश को नाकामयाब कर
क्योंकि अब इन्हें अपने हिस्से का आसमान
स्वयं लेने का हुनर आ गया है।

'रश्मि’

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12 JUN 2023 AT 9:30

अब एक आध कदम का हिसाब क्या रखिए,
अभी तलक तो वही फ़ासला लगे है मुझे।।।

‘रश्मि’

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6 JUN 2023 AT 15:42

जो तुम चले गये हो तो सिर्फ़ उस भाषा को
याद रखना जिसनें तुमसे सिर्फ़ प्रेम कहा
क्योंकि प्रेम को अलविदा कहना
किसी भाषा नें सीखा नहीं।

‘रश्मि’

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30 MAY 2023 AT 19:47

आँखों में आँखें डाल कर बात करते हैं
कोई तलवार नहीं होता हाथों में मगर...
✍️कलम की नोक से वो वार करते हैं।

‘पत्रकारिता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ’✍️

‘रश्मि’

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14 APR 2023 AT 0:15

जो कहते थें..ना आने देंगे
आँखों में आँसू कभी
जो मेरी एक मुस्कान पर
जान निसार किया करते थें
वो शख़्स कुछ यूँ बदला
कि मुस्कान क्या आँखों में
अश्क़ का कतरा भी न रहा..

टूट गया हर रिश्ता
खो गए वादे सारे..
एक यक़ीं था जो दरमियाँ
जाने कब वो टूट गया
छोड़ेंगे ना साथ कभी
जो हर पल कहा करते थे
आज कुछ यूँ मुकरे कि सीने में
कोई जज़्बा भी न रहा..

बंधा था जो एक रिश्ता
काले धागों की डोर से
बिना किसी शर्तों के..
चलती थीं साँसें जिसकी
सच्चाई के ज़ोर पे..
ना जाने कब सब चूर हुआ
रिश्ता वो कब दूर हुआ
जो बांध रखा था दोनों को
उन धागों का मोल भी न रहा।।

‘रश्मि’

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12 APR 2023 AT 23:34

चीख उठती हैं
खामोशियां भी
सिसकियों में
कौन कहता है
दिल टूटने पर
आवाज़ नहीं होती।

'रश्मि'

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31 MAR 2023 AT 19:14

फ़र्क़ होता है
गुज़रते हुए कल और
आने वाले कल में
निश्चित अनिश्चित के
बीच से गुज़रते हुए ये पल
लेकर चलते हैं
संभावनाओं को
जो कहीं ना कहीं
जुड़ी होती हैं
संवेदना की डोर से
इन दिनों…
कुछ ऐसे हीं पलों से
होता है मेरा सामना
हृदय मिन्नतें करता है
गुज़रते वक़्त से
ठहरने के लिए...
और वक़्त...
सभी भावनाओं को
परे कर चलता रहता है
अपनी रफ़्तार से…
वक़्त है....
चलना इसकी नियति है
मगर हृदय की उन छोटी छोटी
उम्मीदों का क्या…
जो गुज़रते कल के साथ
आशा भरी निगाहों से देखती है
आने वाले कल की ओर।।

‘रश्मि’

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5 MAR 2023 AT 22:35

तुमनें पूछा…
याद करती हो मुझे
मैंने कहा ‘हाँ’
आज भी बेतरतीब पड़े हैं
मेरे एहसास
कुछ अधूरे से
कुछ अनकहे से
हाँ आज भी मेरी खामोशियाँ
मुखर होने के लिए
बेचैन हैं…
हाँ तुमने ही तो आख़िरी बार
समेटा था इन्हें
तुमने हीं आख़िरी बार
दिये थे शब्द नये
मेरी खामोशी को
आख़िरी बार
तुमने हीं आगाज़ किया था
एक रिश्ते का
उस रिश्ते को आज भी
अंजाम का इंतज़ार है
तुम ही सोचो
क्यूँ ये इंतज़ार है
क्या यही प्यार है ??

‘रश्मि’

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25 JAN 2023 AT 8:48

मंदिर की दीये सी जलती
घर आंगन को रौशन करती
अंगना में तुलसी सी फलती
ईश्वर की वरदान हैं बेटियां
ये खिलखिलाती शान बेटियां
माँ बाप के दिल का टुकड़ा...
भाइयों की हैं अरमान बेटियां
आँचल में भर संस्कार हैं लाती
बाप की पगड़ी का मान हैं रखती
फिर भी ये कैसी रीत दुनियाँ की
दो कुलों की लाज कहलाती
फिर भी बेधर बेमान हैं बेटियाँ ।।

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