रात बढ़ रही है ,
साथ में सन्नाटा भी ,
पर इस सन्नाटे में भी ,
आवाज आ रही है,
पन्ने पलटने की,
बेरोजगार के कमरे से,
पन्ने नहीं शायद वो किस्मत है,
किस्मत के लिए नींद कीमत है,
इसलिए
वो अपनी दिनचर्या बदलकर,
दिन रात पढ़कर ,
पन्ने पलट पलटकर
पलट रहा है अपनी किस्मत ,
जिसकी नींद है कीमत!
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क्योकि में नही अब मेरी कलम बोलेगी देखना !
मजदूर,
जो रहता है निज आवास से सुदूर,
आज क्यों हो गया वो इतना मजबुर,
कि चल पड़ा उस मंजिल की ओर,
जो उनसे है क़ौसो दूर,
वो क्यों है घर जाने को इतना आतुर?
क्योंकि वो शायद जानता है सरकारों का फितूर,
सरकारों पर चढ़ा हुआ है सत्ता का सुरूर,
अमीरों को मिल रहा है ऐरोप्लेन,
मजदूरों को बस मिलना भी दुरूह,
मजदूर ही है देश के असली कोहिनूर,
पर इन सत्ताधीशों की बेरुखी से मजदूरों के -
थके मांदे भूखे प्यासे चेहरे हो चुके है बेनूर,
इस सफर के दौरान मौत का खेल हो रहा है क्रूर,
अपनों की और भागते मजदूर, अपनों से हो रहे दूर,
सरकार के लिए ये मौते, महज एक आंकड़ा है,
क्योंकि चुनाव भी तो अभी काफी दूर पड़ा है,
आखिर कब तक यूहीं मजदूर रोते रहेंगे?
देश के नेता कब तक यूंही सोते रहेंगे?-
फूल जैसी होती है बेटियां,
जैसे ही मिलती है धूप,
पुष्प दिखाते है अपना पूर्ण रूप,
पर बेटियों के सन्दर्भ में क्या है धूप,
धूप मतलब है- विश्वास,ताक़त, आत्मनिर्भरता,
पर बेटियों के ये धूप कभी कभी ही है मिलता,
जैसे पुष्पों को मिलता है सिर्फ दिन में,
वैसे ही रात ढलते ही नहीं होती लडकियो में,
विश्वास, ताक़त,आत्मनिर्भरता की धूप,
उनको नजर आने लगता है हैवानियत का भूत,
वो डरी, सहमी , मुरझाई सी होती है यदि होती है बाहर,
क्योंकि उसे लगता है उस पर हो सकता है प्रहार,
इसलिए बेटियों को फूल जैसी मत बनाओ,
जो सिर्फ धूप में ही खिल पाती है,
उनको बनाओ उन फूलों के रखवाले कांटे,
जिनको देखकर फूल तोड़ने वाले भी पास नहीं आते!
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जब भी लड़की का ' रेप ' किया जाता है,
तो अखबारों में हेडलाइन छपती है -
"लड़की का रेप हुआ"
क्या यह सही है?
बिल्कुल नहीं ..
क्योंकि 'रेप' होता नहीं ,
किया जाता है,
तो फिर क्या ये मानविक अशुद्धि है??
नहीं ऐसा भी नहीं है,
यह मीडिया की मानसिक विकृति है,
जो सच बताने से रोकती है,
कभी रेप पीड़िता को दलित, सवर्ण बताते है,
तो कभी रेपिस्ट को ' समुदाय विशेष ' का,
क्यों आखिर क्यों ??
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जब भी किसी लड़की का ' रेप ' होता है,
तो मीडिया आती है हर बार,
सवालों को लेकर अंबार,
पूछा जाता है क्या है धर्म - जाति,
कैसा है घर परिवार,
क्या ज़रूरत है पूछने की,
जब हो चुका है बलात्कार ,
दलित हो या सवर्ण,
अश्वेत हो या गौर वर्ण,
वो है तो भारत की ही बेटी,
क्यों मीडिया में है इतना मानसिक विकार,
फिर तय होता है कितना करना है प्रचार,
हुकूमत से मिलता है उनको फिर अधिकार ,
हुकूमत कहे तो कहीं चुप्पी साध ली जाती हैं,
और हुकूमत के हुक्म से कहीं किया जाता है प्रहार!
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डर के साए में ,कहा खोए हो,
वक़्त की बेरुखी में,कहा सोए हो!
प्रकृति ले रही है हिसाब अपना,
पा रहे हो फल उसका,जो कड़वे बीज बोए हो!
सारा जहां अब ये ठहर सा गया है,
पूरे विश्व में अब डर छा गया है ,
जो देश करता था परमाणु शक्ति की बातें,
एक विषाणु के कारण वो भी घुटने पर आ गया है!
शहर - शहर अब कोरोना से सहम - सा गया है,
सभी की दुआओं में अब रहम या दया है!
पर्यावरण के लिए अब सब कुछ नया है,
वक़्त अब जीवनशैली में परिवर्तन का है!
वक़्त अब प्रकृति के मनुज मिलन का है,
वक़्त अब अपने आत्मचिंतन का है,
वक़्त अब अपने हृदय परिवर्तन का है!
अब भी न संभला हे!मनुज ,तो तुझपे है धिक्कार,
प्रकृति है ये,करती रहेगी,बार बार प्रहार!
प्रकृति की हे!मनुज सुन ले तू भी पुकार,
प्रकृति पर बन्द कर दे अपने अत्याचार!
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भारत माँ का अटल हिमालय,
गद्दारो के लिये था प्रलय,
उन्होंने जो किया निश्चय,
वो कर्म फिर किया अवश्य,
चाहे अमेरिका की बंदिश हो,
पाक की नापाक साजिश हो,
हो या देश की राजनीतिक रंजिश,
सबसे उन्होंने था लोहा लिया,
अमेरिका को परमाणु परीक्षण करके बताया था,
पाकिस्तान को करगिल में औंधे मुंह गिराया था,
अमेरिकी संसद में माँ हिन्दी का मान बढ़ाया था,
अपनी ओजस्वी वाणी से विश्वपटल पर छाया था,
हालांकि पा न सके थे वो दीर्घकालिक शासन कभी भी,
पर अल्पकाल में भी उन्होंने दीर्घकाल से ज़्यादा पाया था,
भारतीय राजनीति का सूर्य अब अस्ताचल को चला गया,
वह सिर्फ व्यक्ति न व्यक्तित्व था ,जो अनंत में समा गया,
अटलजी मृत्यु अटल थी जो न टल सकी तो क्या हुआ,
पर आपका नाम जो अटल था,वो हर पटल पर छा गया-
माथे पे बिंदी,साड़ी औऱ सिंदूर,
रत्तीभर भी जिन्हें नही था गुरुर,
ऐसी थी हमारी सुषमा जी,
जो सबके दिलों की थी कोहिनूर,
पर वो अब चली गयी हमसे बहुत दूर,
वैसे सत्ता इंसान को बना देती है मगरूर,
पर इनके दिल मे था सिर्फ सेवा का सुरूर,
चाहे पीड़ित इनसे निकटस्थ हो या सुदूर,
सबकी दुविधा को किया दूर भरपूर,
कभी कभी शब्दबाणों से बन जाती थी वो क्रूर,
पाकिस्तान को संयुक्त राष्ट्र में कर दिया था मजबूर,
ऐसी बनाई विदेश नीति, किया पाक को दूर,
सभी राष्ट्रों को मित्र बनाया,मिलाए सबके सुर,
ऐसी थी सुषमा जी, थी भारत की कोहिनूर,
पर नियति के खेल से,वो हमसे हो गई दूर,
इज्जत और प्यार उन्होंने कमाई है भरपूर,
हर हिंदुस्तानी के दिल मे हरदम रहेगी ज़रूर-
रुक जाओ ना,
इसमे छिपा है रुकना,
इसमे छिपा है जाना ,
हमने कहा- रुक जाओ ना,
उसने समझ लिया - जाओ ना,
इसलिये वो रुकी नही ,
चलती ही गई ,
मंजिल दूर भी थी नही,
हमने भी उसको रोका नही,
क्या है मंजिल उसकी सोचा नही,
जहाँ भी हो मंजिल पर वो खुश थी दूर जाकर,
तो जाने दिया ,
चाहे गलत हो या सही मैंने बस यही किया,!
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मुझे ना तो खुदा से दिक्कत है,ना ही भगवान से,
मुझे ना तो गीता से दिक्कत है,ना ही क़ुरान से,
मुझे ना तो भजन से दिक्कत है,ना ही अज़ान से,
मुझे ना तो हिन्दू से दिक्कत है,ना ही मुसलमान से,
मुझे सिर्फ और सिर्फ दिक्कत है,
इंसानो में रहने वाले उस शैतान से-
जो देश मे रहकर देश विरोधी नारे लगाते है,
जो कश्मीर के पत्थरबाज़ों से सहानुभूति जताते है,
मुझे दिक्कत है उस मानसकिता से-
जो लड़की से दुष्कर्म में लड़की की गलती बताते है,
और लड़कियों के वस्त्र धारण पर ज्ञान देने लग जाते है,
और कई नेता तो ऐसे है दुष्कर्मी को ही बचाने लग जाते है
धिक्कार है उनकी ऐसी तुच्छ मानसिकता पर,
वे क्यो भूल जाते है कि उनके भी माँ-बेटी है घर पर,
मुझे दिक्कत है उस नेता से-
जो कृष्ण को रोमियो बताता है और खुद संसद की मर्यादा ही भूल जाता है,
वीरता के सबूत मांगता है ,कोई गाय का चारा तक खाता है,
मुझे दिक्कत है उस सरकार से-जो गौमाता को मुद्दा बनाती है-
और सत्ता के मोहपाश में ऐसी अंधी हो जाती है,
गोमाता से किये सारे वादे वो भूल जाती है,
मुझे दिक्कत है उन मुल्लो से-जो तीन तलाक बोल जाते है,
ज़िन्दगी की राह में,अपनी बेगम को अकेले छोड़ जाते है,
मुझे दिक्कत है उन भगवाधारियों से-जो दहेज के लोभी होते है,
दहेज के लालच में,वो बेटियों को भी बेच देते है,
मुझे ये दिक्कत कब तक रहे ,मुझे नही पता,
देश का युवा जाग्रत हुआ,तो सारी दिक्कतें हो जाएगी दफा-