Ramesh Kumar   (Ramesh kumar)
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Joined 11 April 2017


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Joined 11 April 2017
27 MAR AT 19:07

मुझे मालूम था ये काफ़ी ना था,
तुम मौन से मुनि हुए, मेरा इरादा बदल गया..!!

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26 SEP 2023 AT 20:25

मैंने तो बेच दिए थे ख्वाबों को इस कदर अपने
और तुमको भी कहानी के किरदार में रहना था

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21 APR 2022 AT 22:25

गुरेज़ इस बात का, की मैं ख़्वाब हूं
तू हिज्र का मारा, मैं वस्ल- ए रात हुं

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19 NOV 2021 AT 20:02

सुना है.. तुम्हारे शहर की आवा-जावी रोक दी है
हाँ......, मौसम ख़राब है, यादों पर भी चालान है

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8 NOV 2021 AT 20:44

फ़िर वही हवा चले शायद.!
चाँद के शब तले हम मिले शायद
दुनिया का है,भी तो क्या है
हम इक दूजे में हों शायद
अरसा एक बीत गया तो क्या है
तुम से हम, हम में तुम,
हम ही हम हो शायद,
आस है तो बस इतनी
अब ना कोई गम ना कोई इल्म हो शायद
कभी मिले फुर्सत, तो आकर देख
कहीं ख़त के पुर्जे मिले शायद
फ़िर वही हवा चले शायद..
चाँद के शब तले, हम मिले शायद.!!

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24 OCT 2021 AT 11:33

चिथड़े की बदन पर और भूख की तपन रखी है,
जबां पर लार और पानी में डकार रखी है,
ओर सुना है की चाँद आज फ़िर उसे, रोटी सा दिखेगा..!!

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14 FEB 2021 AT 11:04

कल एक ख़्वाब सिरहाने आकर लौट गया
प्रेम था शायद, लौटना था, शों लौट गया.!

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29 NOV 2020 AT 20:57

वाबस्तगी पर बवाल देखो
रुपयों पर गिरे इंसान देखो

लौ पर लौ लगाते है लोग
अब तो जाना ईमान देखो

हर मूरत में ढूंढते है ख़ुदाई
कभी माँ की ज़बाँ पर अज़ान देखो

लगें है हर मन पर ताले यहाँ
अब आते कहाँ मेहमान देखो

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3 NOV 2020 AT 21:28

अंजुमन सुकून से भर रहा है..!
कितना खाली खाली,ख़ुद कर रहा है..

तलाश थी ख़ुद को ख़ुद ही में ..
देखा तो एक क़ज़ा में साँस भर रहा है..

बेहताशा को, भला हताशा कैसी...
चलो चलते है, आफ़ताब ढल रहा है...!!

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8 OCT 2020 AT 20:10

सरकारी मेहमान हूँ, कुछ वज़न तो डालो
यूँ बे-वजह फाइलों की धूल नहीं उड़ाता.!

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