गेहरे थे जख्म मेरे,और राज़ उनका भी गहरा था।सपनो की आज़ादी रास न आयी उनको,आँखों पर शोहरत का कुछ ऐसा पेहरा था। - Rama
गेहरे थे जख्म मेरे,और राज़ उनका भी गहरा था।सपनो की आज़ादी रास न आयी उनको,आँखों पर शोहरत का कुछ ऐसा पेहरा था।
- Rama