Rakshit Raj   (रकshizm)
130 Followers · 4 Following

read more
Joined 2 September 2017


read more
Joined 2 September 2017
31 JAN AT 9:03

'कुछ बेबाक, कुछ अय्याश
कुछ दिलफेंक, कुछ चालाक
कोई शातिर, कोई आज़ाद
कोई राही, कोई रज्जाक
कुछ मुझसे मिले, कई मुझमे मिले
सब मिले, कुछ ग़म मिले
एक सादगी को ढूंढता, मैं सादगी ही खो रहा
बस तह पर तह ओढ़ता, मैं कई मैं को ढो रहा
मैं क्या चला मैं क्या बना, तू लिख मुझे मैं सच बना
ना अय्याश, ना चालाक, बस बेबाक और आज़ाद'

-


30 JAN AT 9:06

'तुम्हे तक़लीफ़ है ये जताने में कि तुम तकलीफ में हो,
तुम्हारी आंखें एक कर्ज अदा करती है।
कुछ ख्वाहिशें तो टूटी होंगी कभी,
ये चुप्पी तुम्हारे शोर बयां करती है।'

-


16 SEP 2022 AT 23:00

'कल एक ख़त मिला मुझे मेरी अलमारी में,
और एक टूटा बस्ता, उस अंधेरी चारदीवारी में।
मैंने देखा मेरी लिखावट, जो अब पहले सी नहीं।
कुछ धूल की पर्तें जो काफी गहरी हो रहीं।
मेरे घर का पता जो अब बदल चुका है,
मैं बस उस दीवार को देखता रहा,जो अब मुझे खो चुका है।
उस काग़ज पर स्याही अब बड़ी बेतरतीब सी लगती है,
जल्दबाजी की हिन्दी है पर शांत उर्दू सी दिखती है।
पर उस ख़त में सब वैसा ही था,
जैसा मुझे पसंद था, जैसा मैं चाहता था।
कुछ अनकही बातें है, कुछ हसी के किस्से है,
जिसे भेजना था उसका पता है, क्यूँ ना भेज सका उस कहानी के हिस्से है।'

-


15 SEP 2022 AT 11:32

'आखिर किसी वक्त तो तुम भी लौटोगे उन रास्तों पर,
रास्तें जो तुम्हें तुम्हारे बगान ले जाते है।
वो गलियाँ जहां मेरे खेत हुआ करते थे,
ये कच्चे से पत्थर मुझे मेरे मकान ले जाते है।
आज खुश हूँ मैं, ये मालूम है तुम्हें,
ये मुस्कराहटें मेरे यादों की थकान ले जाते है।'

-


5 AUG 2022 AT 22:34

"ये लिखाई कागज़ों पर नक्काशी की तरह है,
ये बारीक है, इन्हें वक्त लगता है।
तुम आज थोड़ी जल्दी में दिखते हो, कल आना।
आज तुम्हें सुनने पर तुम्हारा दर्द दिखता है।"

-


16 JUN 2022 AT 21:26

"कल तुम कुछ कह रहे थे,
खैर छोड़ो, कल तुम कुछ और थे जो कह रहे थे|"

-


5 JUN 2022 AT 14:01

"मुझे लिखना था अपने बारे में तुम्हारी किताब में,
एक किस्सा था मेरा, चंद नज़्मे थी।
कुछ ख्वाब थे, कई गज़ले थी।
पर अब आलम ये है कि मेरी अपनी कहानी है,
किताब मेरी है, बस तुम्हरी कुछ निशानी है।"

-


9 FEB 2022 AT 22:41

‘तुम जो ढूँढ रहे हो वो मिल गया तो ठीक,
ग़र जो नहीं मिला तो आगे ख़याल क्या है?
मैंने इतनी बेतरतीबी से समेटा है जवाबों को,
अब याद नहीं की जो ढूँढ रहा था वो सवाल क्या है?’

-


20 DEC 2021 AT 19:09

‘मैंने सुना कि ग़ुरूर है तुम्हें इस बात का की सब मिला,
अफ़सोस! तुम्हें ख़बर नहीं की बस वो मिला जो हमने लिया नहीं |’

-


15 DEC 2021 AT 14:12

‘मैं बैठा हूँ ऊँची इमारतों के सक़फ़ पर,
सियाह रातों में, जब सब शून्य सा शांत हो |
हवा की खामोशी कहती हो कि तुम बिल्कुल एकांत हो |
उस पल में तुम्हारी रूह में मिलावट की कमी होगी,
ग़र सोचने के काबिल हो तो आँखों में नमी होगी |
तुम पाओगे की आज मशहुरीयत माशूक़ नहीं,
तुम्हारी ख़ासियत भी वक्त की मौक़ूफ रही |
ये वहम है कि शोर का ये इश्क़ टूटेगा नहीं,
सियाह रातों में जो एक बाम पर तुम बैठे ही नहीं |’

-


Fetching Rakshit Raj Quotes