हमें हिज़्र का अपने तलबगार बना गए
इश्क़ का अपने गुनाहगार बना गए
ख़्याल उनका बेरहम हुआ ज़हन में
हमें बेवफाई का शिकार बना गए ।
कभी खाई नही जिनकी कसम मैंने
वो बेदर्दी मुझे ही खाकसार बना गए ।
टुट के बिखरे रेत की मानिद ज़मीं पर
रकीब मेरी रूह को दागदार बना गए ।
कैसा खेल है ये नसीबों का मेरे रब्बा
मेरी नज़र में मुझे शर्मशार बना गए
इश्क़ किया था तो हौसला भी रखते रकीब
क्यों मुझे ही इस इश्क़ का बीमार बना गए ।
#राखीसहर
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