ज़िक्र तेरा जो किया रात से मैंने
वो भी रोई तेरे इश्क़ की आस में
कहने लगी काफ़िर सी हालत है
मर न जाऊं कहीं उसकी प्यास में
टूट कर चाहना कहाँ बार बार होता है
आलम ए बेज़ारी खुशनुमा बरसात में
पतझड़ जब लगता है पत्ते सूख जाते है
हम भी यूँही सूखते है दिलबर की आस में
आखिर कब तक दिल बेचैन रहे तुझ बिन
छोड़ देंगे तुमको तन्हा बस आखिरी सांस में
मोहब्बत जान ले लेगी देख लेना एक दिन मेरी
बस जीती हूँ तेरी एक झलक मिलने की आस में ।
#राखी
- #राखी