आंसू आते है आँखों में शराब समझ के पीती जाती हूँ
इतनी बेबसी है की अज़ाब समझ के गुज़रती जाती हूँ
कैसा दर्द है ये दिल का दर्द ही मुझे चैन नही लेने देता
तेरे चेहरे को किताब समझ लफ्जों में उतरती जाती हूँ
यूँ तो कई बार मैंने कोशिश की पर हर बार नाकाम रही
तुझे नहीं भूलती बाकि हर एक शै भूलती जाती हूँ
लाख ज़माना कहे तू गैर है फिर भी तेरी तलबगार हूँ मैं
प्यास जो मिटती नही पास होते हुए सराबोर होती जाती हूँ
नशीली हो जाती हूँ मैं कुछ कुछ शराब की तरह साहिब
कतरा कतरा बिखरता है लहू पानी बनकर रिसती जाती हूँ
गम नही मुझे प्यार में दूरी का मैं तो इश्क़ में तेरे हयात हूँ
तू याद मत आ क्योंकि मैं याद की आग में तपती जाती हूँ
#राखी
- #राखी