Rajni   (रजनी)
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Joined 15 December 2016


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30 JUN 2022 AT 11:08

अब लोगों के पास मन नहीं होता, एक अस्त-व्यस्त बगीचा होता है जिसमें वे खुद भी कहीं खड़े नहीं हो पाते।

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6 JUN 2022 AT 10:10

सागर में मिलकर भी नदी
फडफड़ाती है ,
बेबस सी बार-बार आकर
किनारे से टकराती है,
भूल जाती है कि क्या
करना है,
सागर की हर 'हाँ' में बस
'हूं ' भरना है।

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6 MAY 2022 AT 14:03

ज़माना तो करेगा सवालात बस,
खतावार की खता कौन देखेगा।

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25 APR 2022 AT 10:29

"माँ" मिट्टी की तरह होती है उसके हिस्से में केवल संतान की जड़े आती है, बाकी फल, फूल, पत्ते, शाखें सब पेड़ के अपने होते है।

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3 APR 2022 AT 12:40

जीवन तो हम अपने बचपन में जी चुके होते है
बाकी पचपन तक तो हम... अपनी गिरती , थकती , बिछड़ती सांसों को संभालते रहते है।

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28 FEB 2022 AT 0:13

ए पुष्प!

उग आते हो तुम
पत्थर में,कांटो में
काई में, घास में,
कोनों में,बगिया में
किनारे पे, टापू पे

फिर अपना घर ढूंढ़ लेते हो
किसी हथेली में,
श्मशान में ,मंदिर में
बाहों में, जूडे में
चरणों में, माथे पे

क्यों ऐसे हो तुम!
बड़े ‘निर्लज्ज’ हो तुम।

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27 FEB 2022 AT 0:19

जैसे बांसुरी में राग
जैसे चूल्हे में आग
जैसे मछली की जाग
जैसे चितवन की लाग

धीमे धीमे धीमे !!!

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29 JAN 2022 AT 21:59

रात ने समेटे है
सितारे अपने आंचल में...

कि डूबने से बच जाए एक चांद यहां...!

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16 FEB 2020 AT 20:33

इमारती होती जा रही है जिंदगी,

जड़वत मंजिलों का बोझ ढो रही है।

–रजनी

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5 JAN 2020 AT 21:14

एक भूखी नदी
लील जाती है रेत भी

जैसे प्रेमिकाएं निगल जाती है
एक दिन
अपने प्रेमी की सभी स्मृतियां
प्रेम के आभास पर
डाल कर आवरण!!

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