एक हाथ में आवारगी थी, एक हाथ में रवानगी
दोनो हाथों से जिंदगी को खूब बजाया,
खुद भी तराने सुने, गैरों को भी सुनाया
यार भी खूब मिले, उन्हें भी हंसाया गुसाया
धीरे धीरे सयाने हुए, आवारगी नाराज हुई
रवानगी आगाज हुई
दोस्त उदास हुए
रवानगी को दरकिनार किया, आवारगी को भुलाया
फिर दोनो हाथों से यारो को बचाया
गले से लगाया और आशियाना बनाया
आशियाने के आंगन में मोहब्बत से फूल लगाए
सभी यार एक एक अपने साथ लेके गए
और आशियाने में बची रही सिर्फ इनायते
इनायाते जमा करी, मिन्नत करी, रवानगी को बहलाया
फुसलाया
अकेलेपन में काफी याद वो आया
रवानगी तो मानी नहीं, आवारगी को फिर मैने बुलाया
सयानेपन में आवारगी रमती नहीं
आशियाने में ठहरती नही।
तो अब कोई आशियाना नही, बेशुमार आवारगी हीं सही
सयाने सिर्फ नाम के, नाम हमारे कोई जमीं नही
जिंदगी भर तो तराने बजाए, तरानों की कोई कमी नही
बैठो तो सुनाऊं किस्से, मुझ जैसे किस्से कहीं और नहीं।
#ReLight
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