सुबह की खबर का , शाम तक मंज़र कुछ और होता है,मेरे हाथ पहुँचते है क़ातिल के गिरेबाँ तक कि ,क़त्ल वाला खंज़र कुछ और होता है। - ✍🏻 राजेश "राणा" ©
सुबह की खबर का , शाम तक मंज़र कुछ और होता है,मेरे हाथ पहुँचते है क़ातिल के गिरेबाँ तक कि ,क़त्ल वाला खंज़र कुछ और होता है।
- ✍🏻 राजेश "राणा" ©