सिगरेट सी ज़िंदगी समय के कश लगाती हुई,,,
धुएं की मानिंद उड़ी जा रही हैं,,,,
अचानक,,,,,
आज कई दिनों के बाद,,,
गली के मोड़ पर खड़ी,,,
पान की दुकान की नजरें,,,
मुझ से टकराई,,,
वो मुस्काई,,,
मैं खिलखिलाया,,,
तभी,,,
कांधे पर एक हाथ जितना भारीपन,,,
उतर आया,,,
पलट कर देखा,,, तो,,,
कुछ नहीं पाया,,,
बस,,, चार दोस्त,,,
कल मिलने के वादे के साथ
एक दूसरे को अलविदा कहते हुए,,,
नज़र आए,,,
गली के एक मोड़ पर,,,
वो खो गए,,,
धुएं की मानिंद,,,
मेरी नजरो में रह गए
अधजली सिगरेट के मसले हुए टुकड़ें,,,
और,,, कानों में गुनगुनाती पान की दुकान,,,,
कि,,,
जिंदगी के सफर में गुज़र जाते हैं,,, जो मकाम,,,,
वो फिर नहीं आते,,, !!!
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