Rajeev Kartikey  
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Joined 13 June 2017


Joined 13 June 2017
3 JUN 2020 AT 23:51

सोचता हूँ कह दूं आज
मगर क्या करूँ-
शब्द ही नहीं है, जो खुद को उकेंड़ सकूँ!

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30 MAR 2020 AT 8:29

#भई_गुनाह_तो_है_ही

किसी का मजदूर होना,
घर छोड़ बाहर जा कुछ कमाने को मजबूर होना
गुनाह तो है ही।

बाहर की मुफलिसी में
अनजान रास्तों पर चलकर बढ़ना
आगे बढ़कर कभी भूख से
तो कभी किसी और का इल्ज़ाम सहकर मरना
गुनाह तो है ही।

तुम!
हां, तुम ही सुशासन बाबू!
जिसे कुछ करने की अंदेशा से
सत्ता की बागडोर दी थी हम मजदूरों ने।

चाहे-अनचाहे ही सही
पर, हम जरूर आते रहे हैं
चुनाव के मौसम में वोट गिराने
पर, जब हमारी स्थिति ही गिर पड़ी
वाह! तुमने तो दरवाजा ही भिड़का दिया।

हां! भई गुनाह तो हमने ही किया है।

गुनाह! तुम्हें न समझने का
अगर समझे होते तो हम भी फ्लाइट वाले इंसान होते
आज दर-दर भटकती केवल भीड़ नहीं
और नहीं देखने देते कभी
भीड़ के आंकड़ों को मौत की संख्या में तब्दील होते।
- कार्तिकेय

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10 MAR 2020 AT 7:29

ये जो होली के रंग हैं
वो हर किसी -
मेरे-तुम्हारे, इसके-उसके प्यार का हो।

ये रंग इतना गहरा हो
जो चढ़े तो दिखें न
अगर दिखें तो बोले बस कुछ इतना ही -
"मैं हूँ और रहूँगी"
तेरे पीछे हमेशा यूँही,
जैसे चलता है एक साया
बिना किसी रुकावट के
बिना ये जतलाये कि रोशनी का एंगल
तुम्हें मुझे महसूस होने देता है या नहीं..!
- कार्तिकेय

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13 FEB 2020 AT 19:42

ख्वाहिशे इश्क
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तुम न मिलो
अच्छा है
पर
खुद को
बार-बार
आजमाने को जी करता है।
- कार्तिकेय

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1 FEB 2020 AT 20:29

गांधी की मौत
अगर हम माने तो
है तो बहुत कुछ -
तब भी
और
आज भी।

गांधी की मौत
सुनियोजित गोलियों की आवाज़ है
जो इंसानियत के मतवाले
अपने सीने पर चुपचाप ले लिया करते हैं...
- कार्तिकेय

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1 FEB 2020 AT 19:51

#भूख
हां भूख की अपनी मर्यादाएं होती है
अनायास ही वह अपने साथ ले आता है
अस्तित्व का संकट
खुद से हारने की इबारतें
और वह सब बहुत कुछ -
जो उसने कभी न सोचा है
जो उसने कभी न समझा था
जो उसने कभी न चाहा होगा।

भूख केवल एक शब्द नहीं,
बल्कि भूख अपने साथ लेकर खड़ा हो जाता है,
जिंदगी के तमाम मायने
और बदल जाती है जिंदगी उन मायनों के बावजूद...
- कार्तिकेय

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29 JAN 2020 AT 19:50

किसी ने मुझसे बड़े खीज़ के साथ पूछा -
क्या गांधी अब भी प्रासंगिक है?

मैंने कहा -
आपने जो अपने आँखों पर धुंधला-सा चश्मा चढ़ा रखा है,
उसे कम से कम इतना तो साफ करो
कि औरों की आँखों से तुम्हारी आंखें मिल पाए
फिर, मुझे लगता है
तब आपको किसी शक की कोई गुंजाइश न हो।

गांधी कहते थे -
"मेरा जीवन ही मेरा संदेश है।"

मेरा मानना है -
"उनकी मौत आने वाली तमाम पीढ़ियों के लिए सबसे बड़ा संदेश है।"

एक ऐसा जीवन-दर्शन
जो औरों के लिए केवल जीना ही नहीं मरना भी सिखाती है।
- कार्तिकेय

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27 JAN 2020 AT 11:01

दादियां पहचानती हैं, उन उलझे एहसास को
दादियां मानती है, उन सुलझी जज्बात को
दादियां जानती हैं, एक दिन बेहतर आयेगा।

वह जो उन्होंने सोचा था
वह जो उन्होंने उतना ही जाना और उतना ही पहचाना
एक सपना पाला था।

दादियां इतिहास की दरमियां होती हैं
दादियां केवल बात नहीं करती
दादियां अपने बीते लम्हात के आइने को अपने सुलझे भविष्य में देखती हैं
और
निकल पड़ती हैं बेहतर कल के लिए
जो सबके लिए एक दिन आएगा
और
होगा पहले से बेहतर
पहले से ज़्यादा खुशनुमा
पहले से ज़्यादा ज़िंदा
और पहले से ज़्यादा ज़िंदादिली लिए।
- कार्तिकेय

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20 JAN 2020 AT 21:43

सोचा शुक्रिया कह दूँ
पर, मुझे पता है
उम्मीद के जो शब्द आपने मेरे जिंदगी में आज बिखेरे हैं,
वो केवल शुक्रिया से पूरा नहीं होता.

बस इतना कहुँगा
आपका उम्मीद जो मेरे जीवन के नये साल का है,
वो आगे आपके उम्मीद पर खड़ा उतरेगा...

शुक्रिया मेरे तमाम दोस्त, साथी और गुरूजन...

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18 JAN 2020 AT 3:00

सुनने-सुनाने को था बहुत कुछ

पर,

न उन्हें सुनने की फुरसत थी

और,

न हमने उन्हें सुनाने की जहमत उठाई...

- कार्तिकेय

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