लिहाजों की हिफाज़तो पे उसे रुकना ज़रूर था, वो जो तक़दीर थी हमारी, हमें मिलना ज़रूर था। क्या हुआ ? गर मुहब्बत ना हुआ उस मुझसे, पलट के, मिलना और मारना तो शाश्वत है, उसे बिछड़ना भी ज़रूर था।
बड़ी खूबसूरत वो शाम नज़र आती है, हिज्र के बाद भी अब नमाज़ नज़र आती है। बड़ी आसानी से जो रुकसत हो जाया करते थे महफिलों से, उनके किताबो में अब कई फूल नज़र आती हैं।।
तूझे, तेरे रकीब के अब सहारे नज़र आते है, तेरे ख़यालो में मुझसे ज़्यादा अब वो लिपट जाते है। तुम्हें संभालने में जो हूई थी मुहब्बत तुम्हें मुझसे, मुझे उस मुहब्बत के अब किनारे नज़र आते हैं।
मुहब्बत मुहब्बत सा नज़र आना चाहिए, अगर तुम्हें तुम्हारे इतना वो ना चाहे तो तुम्हें उसे भूल जाना चाहिए। बड़ी आसानी से दे देते हो अपनी हंसी किसी को किसी के लिए, कम से कम इसी बात पे उसको तुम्हारा शुक्रिया तो कर जाना चाहिए।।
गर टूट रहे हैं रिश्ते, तो टूट जाने दो, फिर गलतियां दोहराने की कोशिश क्यों करते हो? जा चुका है जो क्षितिज तलक, उसे आवाज़ से बुलाने की कोशिश क्यों करते हो !?
बहुत ज़ख्म हरे पड़े थे भर जाने को, हुई मुहब्बत किसी से , फिर से किसी पे मर जाने को। वो करता है बातें जंग करने की मुझसे अब, जिसके लिए था कभी मैं हर तूफ़ान से टकरा जाने को।।