Rajeev Prakash   (लफ़्फ़ाज़)
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-एक नौसिखिया
#लफ़्फ़ाज़
https://instagram.com/laffazi_dam_bhar
Joined 5 December 2017


-एक नौसिखिया
#लफ़्फ़ाज़
https://instagram.com/laffazi_dam_bhar
Joined 5 December 2017
8 APR 2020 AT 3:13

ख़ामोशी भी एक ज़ुबाँ है
जो न समझ सका
वो हैरतज़दा है!

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4 APR 2020 AT 19:43

अब जबकि कथित सभ्यताएँ दाँव पर लगी हैं
खोखले दिखावों की ज़मीनें भी खिसक चुकी हैं

शांत गुमसुम अधमरा सा था दरिया कल तलक
आज तलातुम की हलचलें फिर जग चुकी हैं

इस सिम्त बेदर्दी थी उस सिम्त बेबसी थी जी रही
आज देख लो गिरेबाँ में अपने, सूरतें बदल चुकी हैं

हालात सुधरेंगे बेशक़ कल को, मगर विचार करना
बुलन्दी मापने में जड़ें न छूटें,अब हदें सिमट चुकी हैं!

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4 APR 2020 AT 13:58

दिखाई पड़ना रूबरू
इश्क़ की शर्त नहीं
ख़ुश्बू की तरह इश्क़
मौजूँ है हर वक़्त ही!

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4 APR 2020 AT 10:19

मैं तलाशने निकला था ज़न्नत का पता
एक "ख़ुश-परिवार" की दहलीज़ पर जा ठहरा


मैं आरज़ू में था ख़ुदायी नेमत की
मेरी झोली में "परिवार की ख़ुशी" आ मिली!

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3 APR 2020 AT 20:56

वफ़ा जो ढूंढने निकले
रुसवाई ही हासिल हुआ
जैसे ख़्वाब सितारों से गिर
ख़ाक में शामिल हुआ

रिश्ते चमकते थे नूर बनकर
ज़िंदगी की राह में
ज़र्द धब्बा बन गया
जब अभिमान दाख़िल हुआ

दिल को मेरे अज़ीज था
वो हर हद से भी परे
जो प्यार लुटाते नहीं थका
आज मेरा क़ातिल हुआ!

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3 APR 2020 AT 20:50

मास्क यूँ मत पहनना तुम कि पूरी शक़्ल ढँक जाए
तुम्हारे ग़फ़लत में किसी और संग न हम बहक जाए!

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2 APR 2020 AT 21:03

एक वक्त का है ये क़िस्सा खासमखास
महफ़िल थी सजी पर माहौल था उदास

तभी दाख़िल हुआ एक अजनबी महफ़िल में
होठों पर मुस्कुराहटें लफ़्ज़ों में लिए उल्लास

मौसम बदल डाला उसने बात की बात में
बरसने लगीं गुज़ारिशें मानो भर-भर आकाश

दबी ख़्वाहिशें कहो या कहो कोरी अभिलाषाएं
धड़कनों की बंज़र ज़मीं पर बिछने लगी घास

ज़ज़्बातों का सैलाब बह चला फिर एकबारगी
सूखते हलक तर गए, बुझ गयी हरेक प्यास!

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2 APR 2020 AT 10:37

तो भी क़िस्सा तो एक ही रहेगा
तमाम वायदों के ख़िलाफ़ जाकर
इश्क़ हमारा घुटने टेक ही देगा!

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2 APR 2020 AT 10:31

मैंने प्रेम में कविता बाद में लिखी
ख़त लिखा था सबसे पहले

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1 APR 2020 AT 20:18

कश्मकश से रूबरू है हर दिन ज़िन्दगी
लेकिन हमने भी कब ही सीखा डरना है

सफ़र वही तो सुनहरी यादें बनती हैं कल
हर मोड़ पर जिसमें आतिश से गुजरना है

उम्मीदें जब हों साथिया बनकर हमराह
फिर क्या ही तुझे कोई फ़िक्र करना है

अंजाम की मत सोच,नज़ारों का लुत्फ़ लेता बढ़
लोग जिसे ज़ख़्म कहते हैं,असल में सँवरना है!

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