अब जबकि कथित सभ्यताएँ दाँव पर लगी हैं
खोखले दिखावों की ज़मीनें भी खिसक चुकी हैं
शांत गुमसुम अधमरा सा था दरिया कल तलक
आज तलातुम की हलचलें फिर जग चुकी हैं
इस सिम्त बेदर्दी थी उस सिम्त बेबसी थी जी रही
आज देख लो गिरेबाँ में अपने, सूरतें बदल चुकी हैं
हालात सुधरेंगे बेशक़ कल को, मगर विचार करना
बुलन्दी मापने में जड़ें न छूटें,अब हदें सिमट चुकी हैं!
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