Rajat Singh   (रजत सिंह)
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साहित्य-'प्रेमी'
Joined 21 March 2018


साहित्य-'प्रेमी'
Joined 21 March 2018
25 MAY 2023 AT 19:00

अनुरक्ति का विरक्ति में परिवर्तन सम्भव है
किंतु विरक्ति का अनुरक्ति में नहीं..

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2 MAY 2023 AT 18:21

कुछ लोग अलंकरण से अलंकृत होते हैं
तो कुछ लोगों से अलंकरण
कुछ लोग मंच पर सजते हैं
तो कुछ लोगों से मंच
कुछ लोग दान से उपकृत होते हैं
तो कुछ लोगों से दानी
कुछ लोग आतिथ्य से अभिभूत होते हैं
तो कुछ लोगों से आतिथेय
कुछ लोग प्रेम से धन्य होते हैं
तो कुछ लोगों से प्रेम

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17 APR 2023 AT 1:44

जब भी कुछ बदलता है
पूरी तरह नहीं बदलता
जब भी कुछ छूटता है
पूरी तरह नहीं छूटता
जो न ही बदलता है न ही छूटता है
वह क्या है?
पर जो भी है
अनादि है, शाश्वत है, आधार है, अनंत है
उसे जीवित रखो ताकि जीवित रहे मनुष्यता
इतना बोध रहे..
इतना गर्व रहे..

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15 APR 2023 AT 1:45

अपार सुख-समृद्धि से घिर कर भी
दिल में कहीं कुछ चुभता है
धीरे से ही सही पर
कचोटती है आत्मा भीतर ही भीतर
हालाँकि जीवन की संध्या
कटती है रोज़ वातानुकूलित कमरे के नर्म बिस्तर पर
लेकिन ग़ायब रहती है आँखों से नींद अक्सर
ढुलक जाते हैं आँसू बंद पलकों से
जब याद आते हैं वो क्षण
जिनमें कभी की थी उपेक्षायें
बाबू जी की खांसी की, माँ की बीमारी की
पूछने पर उन्होंने हंसकर कहा हम ठीक हैं
और मैं मान गया ये जानते हुए भी की ये झूठ है।

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12 APR 2023 AT 21:58

आज के समाज में दिखावा इतने चरम पर है कि मुझे नहीं लगता आने वाले समय में लोगों के पास कुछ ठोस बचेगा.. कुछ मौलिकतायें शेष रहेंगी।

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10 APR 2023 AT 17:18

वृद्ध एक दर्शन है
यदि झांक सको तुम
उसके चक्षुओं की
अतल गहराइयों में
तुम्हें दिखेगा जीवन-यथार्थ
जिन्हें समेटने का क्रम
अनवरत जारी है किताबों में
उसकी झुर्रियाँ मुखर लिपि है
जिनमें हैं कितने अनुभव व चिंतायें
साथ हैं जिनके सभ्यता व परम्परायें
जिन्हें पढ़ने का गौरव उन्हें है
जो मान देने के साथ देना जानते हैं समय
समय, जो नहीं है आज वयस्कों के पास
पर निकल आता है आत्महत्या के लिए।

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3 APR 2023 AT 23:58

हे विधाता!
मुझे सुंदर जीवन
भले न देना किंतु,
सम्बन्धों में मधुरता
व विश्वसनीयता इतनी अगाध देना
कि असुंदर जीवन का अर्थ याद न रहे।

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30 MAR 2023 AT 22:07

भले न मिले तुम्हें समय
पूजन व भजन के लिए
किंतु सुन लेना पर पीड़ा
बिना कोई एहसान किए

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24 MAR 2023 AT 23:27

जब-जब मेघ लगे गरजने
घनघोर बरसे लगे चमकने
तब-तब सम्मुख मेरे तुम
हाथ थामती दीं दिखाई
तुम याद अतिशय आई

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20 MAR 2023 AT 21:55

तुम मेरी
वो अतुकांत
कविता हो
जिसमें तुक
तो नहीं मिलता
पर बार-बार
पढ़ने को
जी चाहता है।

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