एक कविता है जो सुनाना चाहता हु,
कुछ सवाल है मेरे उनसे जो पूछना चाहता हु ।
की जब प्यार नही है हम से तो ये हमदर्दी क्यूँ दिखलाते हो,
जब निभा ही नही सकते तो प्यार क्यूं जतलाते हो,
हो गए हो गैर क़े तो उनसे वफ़ा क्यों नही निभाते हो,
जब प्यार नहीं हमसे तो ये हमदर्दी क्यू दिखलाते हो।
आज भी क्यू मेरी वफ़ा को आज़माते हो।
क्यू मुझे बेवजह आशिक बनाना चाहते हो।
खिलौने बहुत है बाज़ारो मे इस तरह क्यु मेरे दिल से खेलना चाहते हो।
तुम शायर कहती हो खुद को तो शब्दो को क्यु नही समजाति हो,
हकीकत से रुबरु होने से क्यु डर जाती हो ।
इज़हार-ए-नफरत तुमने ही तो किया था महफ़िल मे सरे आम,
अब क्यु अपने फैसले से मुकर जाना चाहती हों।
मेरे बगैर रहना आसान है तुम्हारे लिए तो अच्छा है,
पर इस बात पर यकीन क्यू नही करना चाहती हो।
रकीब से भी प्यार करती हो या महज दिल बहलाती हो ,
क्या उसे भी आशिक़ बना के छोड़ देना चाहती हो।
जब प्यार नहीं है हमसे तो यह हमदर्दी क्यों दिखलाते हो।
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