सुनो मैं तुम्हारे शहर आ रहा हूं
एक बार पीने फिर जहर आ रहा हूं
मुझे देखो तो अंधेरा कर लेना
मेरी नज़रों से तुम किनारा कर लेना
हां मैं डरता हूं
इसीलिए न घर से बाहर निकलता हूं
सहम सहम जीना सीखाती है जिंदगी
अक्सर तन्हाई में सताती है जिंदगी
मैं नफरत भी क्या करूं तुमसे
और शिकायत भी क्यूं करूं तुमसे
न जाने मैं क्या क्या बक रहा हूं
बस कागज पर कलम घिस रहा हूं
जिंदगी स्याही सी एक बूंद खत्म हो रही है
बस ये एक कलम ही है जो साथ चल रही है
क्या बताऊं कैसे संभल रहा हूं
सीधा खड़ा भी न हुआ था मैं कि फिर से बिखर रहा हू
सुनो तुम्हारे शहर आ रहा हूं
- Kalaam Firozabadi