Rahul Salam   (राहुल सलाम)
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Joined 19 August 2017


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24 OCT 2021 AT 22:10


सिलवटें जब हमारे माथे पर आ जाती हैं,
तब शर्ट की सिलवटें कहां नजर आती हैं।

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30 SEP 2020 AT 15:41

हर रोज क्रूरता की सारी हदें पार होती हैं,
हर रोज भारत माँ एक बेटी खोती है,
जिस देश में लड़कियों को देवी माना जाता है,
हर रोज वहाँ कोई लड़की
अपनी आबरू और जान खोती है।

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23 SEP 2020 AT 11:53

लोग काट रहें हैं पेड़ों को
खोल रहें फैक्टरियाँ,
खुद रही है जमीनें,
बन रही है खदानें।
हमें दिखती है
गाँव-शहर की प्रगति,
पर इस प्रगति में
खत्म हो जाती है प्रकृति।

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21 SEP 2020 AT 12:50

लोग काट रहें हैं पेड़ों को
खोल रहें फैक्टरियाँ,
खुद रही है जमीनें,
बन रही है खदानें।
हमें दिखता है
प्रगति में आता शहर,
पर इस प्रगति में
खत्म हो जाती है प्रकृति।

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18 SEP 2020 AT 14:58

यूँ मुस्कुरा के न देख
कहीं चूम लूँ न मैं लब तेरे
मैं ज़िन्दगी ये ना वार दूँ
कहीं चाहतों में अब तेरे।

ख़्वाहिशें बेहिसाब हैं
कुछ रब से हैं,कुछ नाम से तेरे,
जो तुम से हैं,वो रब से नही
अब चाहत नहीं कुछ सिवा तेरे।

चाँद सा है चेहरा तेरा,
जुल्फ हैं काले बादल तेरे
छुप रहा चाँद बादलों में
आ बैठ ज़ुल्फ़ सँवारुं तेरे।

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6 SEP 2020 AT 15:54

हमारे मन में
किसी के लिए जन्मी प्रेम भावनाएं
कभी समाप्त नहीं होती,
वो हमेशा हमारे अंदर जिंदा रहती हैं।

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24 AUG 2020 AT 23:32

विडंबना ये है कि,
हम प्रकृति को अशांत कर,
उनमें शांति तलाशते हैं,
पर प्रकृति हमें कभी निराश नहीं करती।

प्रकृति को माँ का दर्जा
यूँ ही नही दिया जाता।

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15 JUL 2020 AT 10:52

मैं नहीं मानता आत्मा अमर है,
अमर अगर कुछ है,
तो है बस यादें,
यादें हमेसा ज़िंदा रहती हैं,
और हमेशा रहेंगी,

मुझे भी यादों में जिंदा रखना ।

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14 JUL 2020 AT 12:14

खामोश रहने देना ज़ुबां को ,
बस खुद को मेरी ओर आने दो।
फिर सीने से लगा लेना मुझको,
धड़कनो को शोर मचाने दो।

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2 JUL 2020 AT 0:34

कुछ अकेलापन सा है इस ज़माने में,
उम्र गुज़र जाती है सच्चे रिश्ते कमाने में।

कुछ लोग थे जो मुझे अपना कहते थे,
कोई कमी न छोड़ी उन्होंने मुझे रुलाने में।

झूठ, फरेब, वो इधर-उधर की बातें,
बड़ी मेहनत करते हैं लोग एक दिल दुखाने में।

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