हां मैं तुझे कहां समझता हूं, जब तेरे बिन कहे तेरी परेशानियां समझ जाता हूं।
मैं तुझे कहां समझता हूं, कि जब जरूरत हो बिन बुलाए तेरे पास आ जाता हूं।
मैं तुझे कहां समझता हूं, जब तेरे भीतर की बैचैनी तेरे चेहरे से पढ़ लेता हूं।
मैं तुझे कहां समझता हूं, कि जब तेरी भलाई के लिए तुझसे ही लड़ता हूं।
मैं तुझे कहां समझता हूं, कि बिन बोले तेरे आंखो के इशारे पकड़ लेता हूं।
मैं तुझे कहां समझता हूं,जब तेरी हरकतों में तेरा बचपना देख मुस्कुराता हूं।
मैं तुझे कहां समझता हूं, जब तेरी मासूमियत देख मै भी मासूम हो जाता हूं।
मैं तुझे कहां समझता हूं, जब तेरे होने से ही चारो तरफ सुकून सा पाता हूं।
मैं तुझे कहां समझता हूं, जब तेरे साथ बैठकर बिलकुल ठहर सा जाता हूं।
मैं तुझे कहां समझता हूं, जब मै खुद को तुझ में देख पाता हूं।
मैं तुझे कहां समझता हूं, जब मैं तुझे दुनियां से अलग पता हूं।
हां, मैं तुझे कहा ही समझ पाता हूं।।-
कि मन क्यों उदास है आज,
ख़ुशी की वजहें तो बहुत है पास,
शायद किसी और वजह की है तलाश,
कि मन क्यों उदास है आज?
आज हर तरफ़ पसरा सन्नाटा सा है
रोशनी की एक किरण का आसरा ना है,
अंधकार हर तरफ फैला है आस-पास,
कि मन मेरा क्यों उदास है आज?
हवाओं का रुख भी आज बदला सा है,
मन का मिजाज भी उखड़ा-उखड़ा सा है,
कि वक्त मानो यही ठहर सा गया है
कि मन मेरा क्यों उदास है आज?-
किसी की रातें यादों में बीतती,
किसी की रातें ख्वाबों को पाने में बीतती,
कोई कमब्खत तकिये में अपना चेहरा छुपाता,
तो कोई अपने इरादों को अपना बिस्तर बनाता,
कोई रात में अपनी तक़दीर कलम से लिखता,
तो कोई अपने जख्मों को आसुंओ से धोता,
किसी की रातें कम पड़ती सोने के लिए,
तो कोई इन्तेजार करता रातें कटने के लिए,
रात है एक लेकिन इसके किरदार अनेक।-
बहुत कुछ बात कहने को है दिल में,
मैं कब तक शब्दों का सहारा लेता रहूंगा....
कभी फुरसत मिले तो आकर बैठना पास मेरे,
बिन कुछ बोले आँखों से सब बताता रहूंगा....-
भीड़ भाड़ से दूर कहीं
अकेले में यूँ ही बैठें रहना
ये आसमां ये सितारे इन्हें
ऐसे ही तकते रहना,
अच्छा लगता है मुझे।
कभी बिन मंज़िल की
रहगुज़र में खो जाना,
कहीं किसी अनजान शहर
मे अपना ठिकाना बनाना,
अच्छा लगता है मुझे।
देखता हूं जब भी ये पहाड़,
ये नदियां, ये ये आसमान,
तो एक सुकून पाता हूं,
खुद को इनमे खो देना
अच्छा लगता है मुझे।-
हमें अपने आसुंओ को कुछ इस क़दर छुपाना आता है,
कि कोई पूछे क्या हुआ? तो सब ठीक है...
और खिलकर मुस्कुराना आता है।
एक कि गलतियों की वजह से बदनाम सब होते है,
कहा जाता है ये तो लड़के है...
सब ऐसे ही होते है... हम लड़के है....
अपनी feelings हम खुद तक ही रखते है,
कितने भी हो depressed चुपचाप से रहते है।
क्योंकि हम लड़के है... लड़के थोड़ी रोते है।
Feelings हमारी भी होती है, hurt हम भी होते है,
किसीको पता न चले इसलिए अकेले में रोते है।
हम लड़के है....
अपनो से दूर रहकर दुःखी हम भी होते है,
कभी पैसो की कमी से सपने हमारे भी चूर होते है,
हाँ जी! हम लड़के है और हम भी रोते है।
अगर रो दिए तो मर्द होने पर सवाल उठाया जाता है,
लड़का होकर रोता है... और मजाक उड़ाया जाता है।
दर्द से हमारे सभी अनजान है....
अन्दर से टूट कर बाहर से मुस्कुराना,
क्या इतना आसान है???-
हम लड़के है साहब! हम कहाँ रोते है,
होना पड़े अपनो से दूर चाहे हो जाये
कितने भी मजबूर...हम कहाँ रोते है।
दिल मे हमारे दर्द और चेहरे पर मुस्कान होती है,
असल मे हम लड़को की यही पहचान होती है।
घर की जिम्मेदारियां, भविष्य की चिंता और
समाज के ताने हँस कर के सहते है...
हम तो लड़के है, कहाँ कुछ कहते है।
हो लड़ाई जब बहन से तो हम ही कुटे जाते है,
बहनों की शादी में भी हम लोअर टी-शर्ट में
नजर आते है... हम लड़के है।
गलती किसी की भी हो, गलत हम ही कहे जाते है
हम लड़के है ना, हम सब सह जाते है।
निर्दोष साबित होने तक हमे दोषी ही बोला जाता है,
कुछ गलतो की वजह से हमे गलत ही तोला जाता है
हम लड़के है....
हमें तो बचपन से ही ये बताते है,
अरे! तुम तो लड़के हो लड़के थोड़ी घबराते है।
हम लड़के है...
लाखों दर्द हम अपने अंदर छुपा लेते है,
क्योकिं हम लड़के है...
जो दर्द मे भी मुस्कुरा लेते है।
To be continued....
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चुनौतियों से भरा जीवन,
विचलित होता मेरा मन,
कर्तव्यों का बोझ बड़ा,
भारी बाधा आन पड़ा,
कभी हुआ चिंतित मैं,
किंचित ही समर्पित मैं,
भयभीत होकर मैं खड़ा,
सारा संसार है पीछे पड़ा,
अवसर की प्रतीक्षा बड़ी,
मन में दुविधा आन पड़ी,
दर्पण ना प्रतिबिंब दिखाये,
अश्रु भी ना अब बाहर आये,
मुस्कान खुद में ही रोता जाये,
अब तनिक भी ना समझ आये।-
प्रेम बंधन नहीं प्रेम मुक्ति है,
प्रेम सम्बन्ध नहीं प्रेम समपर्ण है,
प्रेम निष्पक्ष है प्रेम स्वंतत्र है,
प्रेम पुष्प नहीं प्रेम सुगंध है,
प्रेम अंत नही प्रेम अनंत है|
प्रेम में लाभ-हानि नहीं,
प्रेम में पाना-खोना नहीं,
प्रेम में इच्छा, अभिलाषा नहीं,
प्रेम तो जीवन का आधार है।
प्रेम में कोई शोक-विलाप नहीं,
प्रेम जीवन-मरण का श्राप नहीं,
प्रेम शरीर नहीं प्रेम आत्मा हैं,
प्रेम परीक्षा नहीं प्रेम परिणाम हैं,
प्रेम बिना जीना जीवन व्यर्थ है,
प्रेम तो सदा जीवन का अर्थ है|-
जब मैं कहता हूं मुझे कोई फर्क नही पड़ता।
हाँ मुझे भी दर्द होता है,
जब मैं कहता हूं मुझे कहाँ दर्द होता है?
मुझे भी जानना होता है,
जब मैं कहता हूं मैं क्या करूँगा जान के?
मैं भी परेशान होता हूं,
जब मैं अपनी परेशानियां बता नही पाता।
इन्तेजार मुझे भी रहता है,
जब मैं कहता हूं मैं किसी के लिए नहीं रुकता।
मुझे भी रिश्तों की कद्र होती है,
जब मैं रिश्तों की कद्र दिखा नही पाता।
आंखे मेरी भी नम होती है,
जब मैं सही होकर भी समझा नही पाता।
कहना मैं भी बहुत कुछ चाहता हु,
बस लव्जो में यूं बयां कर नही पाता।
थोड़ा नासमझ मैं भी हूं,
पर कभी समझदारी छिपा नही पाता।-