14 JUN 2017 AT 0:14

निगाहें कहती हैं कुछ,
तुम कुछ और बोल देते हो
आँधियाँ ख्वाहिशों की कैसे,
इक पल में सोख लेते हो.
रुक जाया करता हूँ,
जज़्बातों के आधे पुल पे
अपने हिस्से का आधा,
पुल क्यों तोड़ देते हो
नज़रें, नज़र-अंदाज़ तुमको,
करें भी तो कैसे
कभी शाम, कभी चाँद बनके,
मुझको ढूंढ लेते हो ।

- ©R_Sengar