Raghuveer Sengar   (©R_Sengar)
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wish... if I could explain it correctly.. totally
Joined 3 January 2017


wish... if I could explain it correctly.. totally
Joined 3 January 2017
1 JAN 2023 AT 23:44

उम्मीद है तुमने भी कल
डूबते सूरज के साथ
पूरा साल दोबारा से जिया होगा
वैसे ही जैसे
तुमसे मिलकर लौटते लौटते
मेरी आँखें अनगिनत बार तुम्हे
चूमती और गले लगाती हैं

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15 DEC 2022 AT 17:05

कि कोई अरमान मेरे अपनों का न टूटे
बाक़ी सारी ख्वाहिशें मेरी
इसी बात पे नाराज़ हैं

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10 NOV 2022 AT 9:03

It's disheartening that you guys are shutting down this plateform...
It has been an enlightening journey for me with YQ. I'm just sad...that we could not save YQ, it's kind of a personal loss for me.... I've been busy these days.. couldn't spend much time here... was just wondering that after wrapping few things up, I'd come back and spend quality time reading some random but great creations by some beautiful minds.... something i used to love... We failed u guys...
Good luck for your future endeavours..

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20 SEP 2022 AT 6:01

ख़ामख्वाह क्या करें
हम, शिक़ायत किसी की
हर शख़्स बना बैठा है यहाँ
'आफ़त' किसी की
वो, मान जाएगा
शब ढलते-ढलते
सब से झेली कहाँ जाती है
यूँ नफ़रत किसी की

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7 SEP 2022 AT 1:45

खारापन, कम सा है
बढ़ा दे, ऐ ज़िन्दग़ी !
मैं समंदर हूँ
मुझसे लोग नमक मांगते हैं

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21 AUG 2022 AT 7:14

दोनो तरफ़ सड़क को रौंदती
गाड़ियों के बीच डिवाइडर पे
धूल से सने
और अधमरे से दिखते
ये पेड़
साँसे लेना नहीं छोड़ते
और सावन की कुछ बूंदें पड़ते ही
नोंच फ़ेंकतें हैं
हर क़तरा धूल का
लहरा उठते हैं वो
और लद जाते हैं रंग बिरंगे फूल उनपे भी
वो सताये तड़पाये ज़रूर होते हैं
पर कभी भी
जीना नहीं छोड़ते

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24 JUN 2022 AT 15:58

तू कर एहसान ख़ुद पे और
ख़ुद को चौंका दे
बिख़रे जब टूट के
ख़ुद को फिर इक मौका दे

शामें बीतें रातें आएं
तू फ़िक़्र न करना
अपने भीतर पाल सुबह
अंदर सूरज इक जला दे

मौके तलाशती हैं
जो तेरी बुलंदी मिटाने के
तू सामना कर उन मुश्किलों का
इन्हें हवा में उड़ा दे

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29 OCT 2021 AT 0:53

कुछ ऐसा सीखा
बवंडरों को झेल कर
के टूट गए शाख़ सब
पर जड़ों ने जीना नही छोड़ा

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13 OCT 2021 AT 16:46

कोई शौक़ नहीं मुझे
यूँ पत्थर हो जाऊँ
पर मुश्किलें, मिजाज़ की सारी
नरमी चूस रहीं हैं
मैं कोशिश तो करता हूँ
कि मामूली बना रहूँ
पर तकलीफें जब भी मिल रही हैं
बस इंक़लाब कह रही हैं

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7 OCT 2021 AT 13:33

कभी शायद था ही नहीं
वो ख़ुद का क़िरदार पढ़ के
क़िताब बंद कर देता था

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