Rachita   (रचिता ...)
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Joined 8 September 2017


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29 SEP 2020 AT 15:49

सुनो दर्द!
जब कभी भी
कोशिश करते हो तुम
निकलने की
उँगलियों के रास्ते,,,
महसूस होती है पीड़ा
की, बदन में
एक नुकीली लहर..
और भींच लेती हूँ
तुम्हें मैं
उँगलियों समेत
अपनी हथेलियों के
दामन में...
तपन से जकड़ की मेरी
सहज होने लगते हो तुम..
कुछ ही देर में
लौट आते हो
धमनियों में मेरी...

लहू और नमक का
रिश्ता है प्रिय
तुम्हारा
मेरा...

-


23 SEP 2020 AT 17:59

-उद्देश्य-

(अनुशीर्षक में)



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13 SEP 2020 AT 22:39

सब आरज़ी थे, अलविदा कह घर गए..
दाइम तन्हाई थी मिरी, सो साथ है।।

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30 AUG 2020 AT 21:00

गंध अपनी ही पराई मान भटके मृग कस्तूरी
तू भी ढूँढे निज इतर निज को कहां है, रे अनुरागी!!

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26 APR 2020 AT 20:43

जीवन,,
प्रेम को उपयुक्त
परिभाषा देने की
प्रक्रिया रहा..

और मन,,
इस प्रक्रिया में
प्रज्वलित
पवित्र अग्नि में
बारहा
झुलसा गया सोना...

मन उज्ज्वल है
किसी सिद्ध तपस्वी के
तेज आभामंडल की भाँति...

पर...
मन का,,,
कुंदन बनना
शेष है...


जीवन अभी..
शेष है।

-


21 APR 2020 AT 20:31

-कमल-





(शब्दावरण में अनुभव
अनुशीर्षक में)

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17 DEC 2019 AT 17:31

पुष्प प्रेम के,,,
सौंपे जाने चाहिए
केवल उन
दायित्ववान हाथों में
जो सहेज सकें
इनकी कोमलता को
आजन्म... और
विदा से पूर्व
खड़ी कर सकें
एक ऐसी सभ्यता
जिसे प्राप्त हो
उन्हीं की भाँति,,,
प्रेम को सुरक्षा देने की
कला में
महारत....

-


11 APR 2019 AT 11:06

-ख़याली चाय-

तुमने पुर्सिश न की
हम भी चुप रहे..
कुछ बातें फ़ितरतन शर्मीली होती हैं
चाहती तो हैं बेहिजाब होना पर
किसी "पहल" के इंतज़ार में रहती हैं...
अब तो ये इंतज़ार ही इश्क़ में है
इन बातों के... और ये बातें, मारे घूटन के
अब ख़ामोशी पहन रही हैं...
......
......
सच ही तो है...
जज़्बा-ए-बेख़याली अकेला क़ातिल है
न जाने कितने मासूम जज़्बातों के...
.......
ख़ुदा करे.. इस मग़रूर बेख़याली को
बस बेख़याली ही नसीब हो...
और मासूमियत बरकरार रहे
लहज़ों में,, रिश्तों में...
जज़्बातों में,, हमेशा..

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15 SEP 2018 AT 17:28

ज़िद्दी है तन्हाई
बेपरवाह तुम..
दिल शिकस्ता
क़रार गुम...
हसरतें फ़ना
ख्व़ाहिशें धूल...
आदतन हम...
तेरी यादों में..
....
....
मशग़ूल...

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9 SEP 2020 AT 18:15

-प्रेम रहस्य-


(अनुभव की झाँकी
अनुशीर्षक में)


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