पुष्कर कुमार पुष्प   (पुष्प🌹)
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Joined 9 November 2017


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Joined 9 November 2017

अहंकार निज जाति-गोत्र पर करते केवल कायर,
वीर्यवान पौरुष से लिखते अपनी गाथा भू पर।
वीर वही, विपरीत समय ने गोद में जिसको पाला,
जाति-गोत्र से नहीं, शौर्य से परिचय देने वाला।।

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बची है कहाँ जिंदगी क्या आरज़ू करूँ
इबादत करूँ पहले या पहले वुज़ू करूँ।
मनाऊँ किसे मैं कहो सजदा किसे करूँ
खुदा ही बदल जाये तो क्या गुफ़्तगू करूँ।।

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हम दोनों में एक सी, कुछ बातें थीं खास।
इंतज़ार था आँख में, होठों पर थी प्यास।।

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मिलना जिससे इस दफ़े, रखना खुद को ढाँप।
वरना तेरे ज़िस्म के, खुल जाएंगे पाप।।

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जीवन के इस तथ्य का, हुआ देर से बोध।
एक तरफ आनंद है, एक तरफ प्रतिशोध।।

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सनम रूह से रूह का, हुआ नहीं जब मेल।
इश्क़ और क्या चीज़ तब, बस ज़िस्मों का खेल।।

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😅आधुनिक इश्क़😅

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शेष के आवेश में अवशेष बन कर रह गया
एक मेरा मन जो निर्जन देश बन कर रह गया।

मूक नैनों की सजल तुम सुन सकी ना याचना
अश्रुओं का द्वन्द निज आवेश बनकर रह गया।

भावनाओं की तरंगें कामनाओं की नदी
बीच में मैं बस हृदय का क्लेश बन कर रह गया।

धड़कनों की गिनतियाँ गिनते हुए दिन कट रहे
प्राण मेरे देह-ऋण का शेष बन कर रह गया।

'आप मेरी माँग भरना, आप ही भरना प्रिये'
जो कभी पूरा न हो आदेश बन कर रह गया।।

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एक द्वंद करता रहा, जीवन भर हलकान।
दिल में रहीं उदासियाँ, होठों पर मुस्कान।।

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मर जाऊँगी मैं अगर, छू ले मुझको गैर।
कहने वाली माँगती, आज गैर की खैर।।

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