पैगाम सितारों से मिला था,
सिरा तो कोई सिरे से जुड़ा था,
वो नूर उसके चेहरे पे,वो इशारा
कयानात का जैसे था,
वो कौन सी रहनुमाई थी,ये कैसे
प्यास जिगर में जगाई थी,
वो कदम बढ़ रहे थे ठहर रहे थे,
मंजिलें मानों नजदीकियाँ ले आई
थी,
वो कौन सा दीपक मन में जला
था,वो आशाओं का मोती सन्नाटों में
जला था,
तनमन की सुधबुध कहाँ थी,
खामोशियों में हलचल ज़रा थी,
वो कौन गुनगना रहा था,थाप दिल में
और रूह में खिलखिला रहा था,
ये किसकी दुआ लग रही थी,जिन्दगी
चहुँ और से महक रही थी,
दौर नए आ रहे थे,शिकवे-गिले अब
कहाँ थे,लुत्फ जीने में आने लगा था,
सांसों में वो समाने लगा रहा था,,,, Copyright by Purnima Chhabra Jain@2016
- Jaahnashien