21 JUL 2017 AT 14:03

मन को समझाने में कुछ वक्त तो
लगता है,गिरके संभलेंगें जरूर,
टूटी कड़ियों को जुड़ने में वक्त तो
लगता है,
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तिनका-तिनका करके बनता
है आशियाना,परिन्दों को घरौंदा
बनाने में,वक्त तो लगता है,
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यादें चलती है साथ कभी दर्द
बनकर,कभी काफिरों सा यादों
का सफ़र लगता है,
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जिन्दा हर शख्स है कहने को तो,
सांसों पे जैसे कोई कर्ज साथ
चलता है,लम्हा-लम्हा फिसल
रहा है वक्त कह रहा हो जैसे,
देख मेरे इम्तेंहां इन्सां,कब तक
तू गिरके संभलता है,,,, Copyright by Purnima Chhabra Jain@2016
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- Jaahnashien