मन की थाह-किसे,
अनंतों-अनंत-सा एक
चाहतों का गुब्बार है,
कुछ रंगहीन ख्वाब और
कहीं रंगों से भरा आकाश
है,छल करते हैं अश्क कभी
दबे पांव सिमट जाते हैं,
छलक जाते हैं पैमानों से और
यूँही बरबस सावन से बरस
जाते हैं,दर्द सीने में और लबों
पर हँसी होती है,जिन्दगी तेरी
दास्तां कहीं रफू-सी तो कहीं
मलमल-सी लचीली होती है,
बन्द महलों में चन्द बाशिंदे
कैद रहते हैं,नीले अम्बर तले,
इन्सां बेघर से रहते हैं,गफलत
में है हर कोई कहीं,कोई किसी
तलाश में है,सुकून कहीं भी
नहीं,भटकाव और उलझनों
का दौर है,दिन के काले उजालों
में,इन्सान अपनी ही तलाश में
हैं,,,Copyright by Purnima
Chhabra Jain@2017
- Jaahnashien