छलते हैं अपने ही अकसर,दर्द होता है क्या ये पूछो ज़राउनसे,जो छले गए हैं अपनों से औरजख्म सहते हैं मौनरहकर,हँसते-हँसते,,,purnima - Jaahnashien
छलते हैं अपने ही अकसर,दर्द होता है क्या ये पूछो ज़राउनसे,जो छले गए हैं अपनों से औरजख्म सहते हैं मौनरहकर,हँसते-हँसते,,,purnima
- Jaahnashien