या तो आईना
झूठ बोलने लगा है,
या मैं अब खुश दिखने लगा हूँ,
एक जंग हो
रही है मेरे दिल से मेरी,
वैसे मैं अब ठोकरों से संभलने लगा हूँ...।
इतनी बार
ख्वाबों में देखा है उसे,
कागजों पर उसका चेहरा उकेरने लगा हूँ..
तुम पढ़कर सोचते
होंगे चेहरे से मोहब्बत है मुझे,
अरे यार..मैं उसकी तस्वीर से इश्क़ करने लगा हूँ..
ये हुनर तो शुरू
से था नही मुझमे मग़र,
उसकी अदाओ को देखकर थोड़ा लिखने लगा हूँ..
पहले मैं ज़ुल्फ़ों को
लटकने, उसको चाँद कहता था,
आजकल मैं खुद को धूप उसको शाम कहने लगा हूँ...।
ए काश! उसको ख़बर
हो तो ज़िंदगी मुक़म्मल हो,
मैं उसी के लिए आजकल ख़्वाब देखने लगा हूँ...।
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