priyanshu ahuja   (प्रिय अंश)
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Joined 9 January 2018


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Joined 9 January 2018
19 OCT 2021 AT 22:56

ये जिंदगी एक दौड़ है
यहाँ हर शख्स
कुछ और है

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22 MAR 2021 AT 19:40

ख्वाबों को भी ख्वाब की जरूरत है , जीने के लिए ।

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2 MAR 2021 AT 7:37

इंतजार में उनके, ख्वाब सो गए हैं ,
दिन-रातों के दरमियां , जज्बात रो गए है ,
अब खुलने दो बंदिशे , उन दरवाजो की
वो इश्क़ के पंछी थे , आजाद होगये है ।

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11 FEB 2021 AT 21:45

कुछ मायनो में दबा हुआ हूँ ,
कुछ आइनों में छिपा हुआ हूँ ।

मैं न छलकने वाला ऑंसू हूँ ।

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9 JAN 2021 AT 0:15

मैं डूबना नही चाहता ,
हा शायद ,
कुछ यादों ,
ख्वाबो ,
लम्हो ,
शब्दो को मिटाना पड़े,
कुछ खामोशियो ,
बातो ,
रिश्तों ,
घावों को छुपाना पड़े
कुछ आँसुओ ,
चीजो,
नींदों ,
खतो को जलाना पड़े ,
और
हा शायद,
इस दिल को कही और लगाना पड़े ,

पर मैं डूबना नही चाहता ।






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8 JAN 2021 AT 23:56

कुछ लम्हो को दरकिनार कर देना चाहिये ,
अबस समझकर ही सही ,
कुछ लम्हो को जकड़ लेना चाहिए ,
सबक समझकर ही सही ।

जरूरी नही डोलती कश्ती डूब ही जाएगी ,
नामुमकिन है पर , तैरना भी सीख ही लेना चाहिए,
भूल समझ कर ही सही ।

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28 OCT 2020 AT 1:22

इतना आसां नही है इस इश्क़ में मुकम्मल होना ,
तकियों को भिगोकर राते गुजारनी पड़ती हैं ।

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12 OCT 2020 AT 13:02

जिंदगी में कुछ की चाह में बहुत कुछ गवा दिया ,
तुझमे शामिल जो राज थे , उसने सब तबाह किया ,
कोई सोच थी जो चिल्ला रही थी पीछे से ,
दो घूट आज के पीकर , मैंने उसको सबा किया ।

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12 OCT 2020 AT 12:57

आज शाम बैठी थी आँगन में मेरे ,
मैने पूछ दिया - सूरज के डूबने का दुख तो होता होगा तुम्हे ,
जवाब आया - जिसे छिपना ही हर रोज मेरे आँचल में हैं, उसके डूबने का दुख कैसा ।।

प्रिय अंश

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16 SEP 2020 AT 3:21


एक वक्त था
जब छाँव धूप में सहारा हुई करती थी
एक वक्त था
जब राते दिनोंदिन गुजारा करती थी
एक वक्त था
जब हर शख्सियत साथ हुआ करती थी
एक वक्त था
हर बात पर नई बात हुआ करती थी
एक वक्त था
जब सुबह दोपहरें साथ उजाला करती थी
एक वक्त था
जब क्षितिज की शाम चाय पे निपटारा करती थी
एक वक्त था
जब वक्त किताबो की उलझन में खोया था
एक वक्त था
जब दिल रकीबो की उलझन में रोया था
एक वक्त था
बस वक्त था ।


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