प्रियांशी प्रज्ञा   (Priyanshi Pragya)
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उदासी मेरी पसंदीदा है लेकिन जीवन को जश्न कि तरह जीती भी हूँ।

इति...!!
Joined 20 December 2017


उदासी मेरी पसंदीदा है लेकिन जीवन को जश्न कि तरह जीती भी हूँ।

इति...!!
Joined 20 December 2017

अनंत देकर शून्य रह जाना...मन की परतों को हटा कर पाना की हम स्वयं ही स्वयं के कितने बड़े हत्यारे हैं।
विष समान ही है भावों को सूक्ष्मता से देखना या समझना।
दरअसल यह देहहत्या नही है मगर आत्महत्या जरूर है
किसी को या सबको अपना अनंत देकर
शून्य रह जाना....

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सूखा पत्ता.....

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शून्यता

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छठ

(अनुशीर्षक में)

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रील और रियल?

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पिता कहीं नही जाते.....

(अनुशीर्षक में)

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