अलमारी में रखी यादों को आख़िरी बार कब टटोला था तुमने,
जवाब था याद नहीं,
घर फिर पूछता है,
कोने में लगी उस तस्वीर को कब देखा था तुमने,
जवाब था याद नहीं,
थोड़ा हंसकर घर ने फिर पूछा,
आंगन में खड़े होकर चांद कब देखा था ये तो याद होगा,
फिर से वहीं जवाब था याद नहीं
अब घर फिर कुछ पूछता,
मैं बोल पड़ा बस ओर मज़ाक ना बना मेरा,
ये सुन घर इठलाकर बोला,
मैने तो बस तुझसे तेरे घर का ही हाल पूछा,
घर के सबसे कीमती पल तो तू भूल गया
आेर तू कहता हैं मैंने मज़ाक उड़ाया,
अब मैं चुप था बस चुप था।
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