Pritam Khaple   (प्रितम खपले)
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Joined 4 October 2017


Joined 4 October 2017
27 OCT 2021 AT 21:04

अमन की ख़ातिर दंगो में घर को जलता देखा,
आज सूरज को लहू-लुहान ढलता देखा।

एक हाथ में तलवार, दूसरे में किसी का सर,
आज उपरवाले के नामपर बेगुनाहों को मरता देखा।

ख़ुद के बच्चे को भविष्य की सलाह दी उसने,
आज दूसरों के बच्चों को धर्म के नाम पर उकसाता देखा।

भीड़ का साथ है मेरे पास, ऐसा कहता था,
आज उसके पीछे शवों को लटकता देखा।

तिरंगे में रंग तो कई है शामिल,
आज रंगो को आपस में लड़ता देखा।

तख़्त के किरायदार बदल गए अख़बार में ये ख़बर आइ हैं,
तख़्त-नशी थे जो कल आज उन्हे तख़्त को कोसता देखा।

इंसानियत की बातें कर रहे थे प्रभु,
आज धर्म के ख़ातिर भक्तो के हातो प्रभु को पिटता देखा।

जवाबदेयी की डिंगे हाँकता था,
आज सवाल पूछने वालों को बेड़ियों में झूँजता देखा।

-प्रितम खपले
(25/6/2021)

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6 OCT 2021 AT 18:54

कामिल ना होगी ये जीत ऐसे इन किनारों से
एक क़दम तो तूफ़ान की ओर बढ़ाओ।

अब ना रुकेगी ये बिजलियाँ, ख़ौफ़ ख़त्म करो
एक उड़ान तो आसमान की ओर बढ़ाओ।

तो क्या अगर साथ नही कोई तेरे, देख सामने
एक हाथ तो दर्पण की ओर बढ़ाओ।

बनी-बनाई ना ढूँढ जो मिले उसपे तू चल
एक क़दम तो राह की ओर बढ़ाओ।

जो ना साधा किसिने वो तू साध के दिखा
एक हाथ तो तीर-कमान की ओर बढ़ाओ।

-प्रितम खपले
(11/6/2021)

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26 SEP 2021 AT 23:27



पता नही था मौत की ये भी शक्ल होगी
ख़्वाबों को यू रोज़ मरता देख
(7/8/2021)

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26 SEP 2021 AT 23:25


अब ये मौत भी सस्ती लगने लगी है
रोज़ ये ख़्वाबों को बिकता देख।
(7/8/2021)

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26 SEP 2021 AT 23:22

हालात ऐ ज़िंदगी क्या बयां करे अब
ज़िंदगी ही ना हो अब सिर्फ़ ये ख़्वाब बचा है।
(15/9/2021)

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4 SEP 2021 AT 0:31

आसन है क्या
जो ख़्वाब कभी साथ जीता था मेरे,
जो कभी अंदर पलता था मेरे,
जो हमेशा बातों में दिखता था मेरे,
जो सर पर सँवार रहता था मेरे,

उस ख़्वाब को भुल जाना
जिसे भविष्य मे अब कभी नही है जीना,
जिसे ख़ुद से अलविदा है करना
आसन है क्या
उस ख़्वाब को भुल जाना

-प्रितम खपले

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19 AUG 2021 AT 23:41

तख़्त का नशा चढे ये दस्तूर ना हो,
खुदा भी बनो लेकिन मगरूर ना हो।

सूरज सी रोशनी चाँद सी चाँदनी ज़्यादा भी अच्छी नहीं,
नूर एक हद तक सही लेकिन बेनूर ना हो।

ज़रूरी है ऊँचायीयो का जुनून हो हावी,
जुनून जुनून तक ही रहे लेकिन फ़ितूर ना हो।

मना ज़िंदगी कभी रहमदिल कभी बेरहम बनाती है,
बुरा करो तो अच्छायी के लिये लेकिन सोच असूर ना हो।

ज़िम्मेदारियों से दूर उस मंज़िल पर आयने मे खुदसे मिलता हु,
ख़्वाब ये ज़िंदगी बने भला रोज़ ये तस्सव्वूर ना हो।

- प्रितम खपले

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22 JUL 2021 AT 23:34

अब जो भी सुकून हैं मौत से ही मिलेगा,
ज़िंदगी से अब कोई उम्मीद बची नही.
(20/7/2021)

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22 JUL 2021 AT 23:28

जिस मंज़िल का ख़्वाब भी ना देखा किसिने,
उस सफ़र पर चल पड़े हैं हम.

-प्रितम खपले
(6/6/2021)

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22 JUL 2021 AT 23:25

तन्हा इतने रहे की इश्क़ हो गया तन्हाई से मगर,
बात ये हैं की इश्क़ कभी रास नही आया हमें.

- प्रितम खपले
(15/7/2021)

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