Prem Pushp Prajapati   (©प्रेम पुष्प)
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Joined 2 November 2017


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10 FEB AT 12:08

मौत आ जाए तो सो जाऊँ मैं,
इस तरह उनींदी को "प्रेम" हराउँ मैं।
अब तो सिलसिला ये हर रात का हो चला,
कहो किस तरह खुद को खुद से मिलाऊँ मैं?

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31 JAN AT 16:18


न जाने क्यूँ सब भाग रहे यहाँ,
न जाने है ये कैसी दौड़।
सबकी आँखें भविष्य को ताकती,
अपने आज से कहाँ किसे कोई मोह।
सबको किसी और सा है बनना,
अपनी पहचान का किसे है मोल।
सब अपने अपने स्वार्थ से बँधे यहाँ,
"प्रेम" सुख दुःख का है कोई तोल।
सब दूसरों के सुख चाहते हैं,
क्यूँ दुनिया से अपनी खुश नहीं कोई?

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29 JAN AT 23:48

आगे देखता हूँ तो सुनसान है राह।
पीछे देखूँ तो कुछ बदला ही नहीं।।

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28 JAN AT 22:28

तनख़्वाह तनक़ीद की लेने लगे हम,
नसीहतें बेकार सबको देने लगे हम।
गालीयाँ और ताने भर-भर बस्ते,
हर रोज बाज़ार, खरीदने चले हम।।

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26 JAN AT 23:10

मुहोब्बत, बस एक ख्वाब हो जैसे
मौत, कहीं आस-पास हो जैसे
किसी को भुला दें, या लें अपना किसे
अब तो कोई अनछुई दास्ताँ हो जैसे
मेरा नशा, लड़कपन छिन गया कैसे
हुआ है क्या? नहीं कोई मकाँ हो जैसे
पलकें झपकती हैं फिर खुल जाती हैं
किसी का आना-जाना कोई अरमाँ हो जैसे
देखो कितना धुआँ-धुआँ है हर तरफ़,
ये राह थोड़े है लाशों की मशान हो जैसे
पाँव उठते हैं फिर थम जाते हैं कहाँ
ज़मीं थोड़े है ये कोई आसमान हो जैसे
कहाँ मुहोब्बत की बातों में फँसे जाते हो
ज़िन्दगी "प्रेम", जंग का कोई मैदान हो जैसे

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26 JAN AT 0:31

मज़लूमों को पता न चले
उनपे सितम ढ़ाए गए हैं।
कोई बात उनके हक की न हो
सदियों से जो दबाए गए हैं।
(शेष अनुशीर्षक में पढ़ें)

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25 JAN AT 23:38

किसी का गुनहगार होना "प्रेम",
उसकी बेगुनाही से बड़ा होता है।
उसकी गर्दन पड़ी होती है ज़मीं पर,
और धड़ गवाही को खड़ा होता है।
वो लाख ज़िंदगियाँ जी ले चाहे तो,
पर दिल-ओ-दिमाग कहीं पड़ा होता है।
वो भीड़ का हिस्सा है बल्की कारण है,
देखो उसे किस तरहा द्वार घेरे अड़ा होता है।

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25 JAN AT 23:20


चलो फिर से दोहराया जाए,
श्वेत-श्याम फिर बनाया जाए।
रंगों से मलाल है शायद हमें,
"तुम्हारे ही कारण" सजाया जाए।
रह गई थीं तस्वीरें कुछ अधूरी,
चलो किस्सों से बहलाया जाए।

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24 JAN AT 9:04

उन्हें कहना, वो संगदिल अब खो चुका है,
तबाह किए हुए था जो अब वो हो चुका है।
दिए थें आँसू जिसने पलकों पर आपकी,
उन्हीं में डूब गहरी नींद अब वो सो चुका है।

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5 AUG 2023 AT 23:49

मुझे सुकूँ मिलेगा कब,
कहो नींद कब आएगी?
(शेष अनुशीर्षक में पढ़ें)

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